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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandin समवाओ • १०/१४ ॥३॥1-1 नाणविद्धिकरा पन्नत्ता (तं जहा)-1१०-१1-10-1 (१५) मिगसिरमद्दा पुस्सो तिण्णि अ पुव्वा य मूलमस्सेसा हत्यो चित्ता य तहा दस वुद्धिकराई नाणस्स (१६) अकम्मभूमियाणं पणुआणं दसविहा रूक्या उवभोगत्ताए उवत्यिया प. १०-ख] - 10-1 (१७) मत्तंगया य भिंगा तुडिअंगा दीय जोइ चित्तंगा चित्तरसा मणिअंगा गेहागारा अनिगणा य ||-1 (१८) इमीसे णं रचणप्पभाए पुढवीए नेरइयाणं जहन्नेणं दस वाससहस्साई टिई पत्रत्ता इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्येगइयाणं नेरइयाणं दस पलिओवपाइं ठिई पन्नत्ता चउत्थीए पुढवीए दस निरयावाससयसहस्सा पन्नत्ता चउत्थीए पुढवीए नेरइयाणं उक्कोसणं दस सागरोवपाइं ठिई पत्रत्ता पंचमाए पुढवीए नेरइयाणं जहन्नेणं दस सागरोवमाई ठिई पन्नत्ता असुरकुमाराणं देवाणं जहनेणं दस वाससहस्साई ठिई पत्रत्ता असुरिंदवनाणं भोमेजाणं देवाणं जहन्नेणं दस वाससहस्साई ठिई पत्रत्ता असुरकुमाराणं देवाणं अत्यंगइयाणं दस पलिओवमाई टिई पत्रत्ता बायरवणप्फतिकाइयाणं उक्कोसेणं दप्त वाससहस्साई ठिई पत्रता वाणमंतराणं देवाणं जहन्नेणं दस वाससहस्साई ठिई पनत्ता सोहमीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं दप्त पलिओवमाई ठिई पत्रत्ता वंभलोए कप्पे देवाणं रक्कोसेणं दस सागरोवमाई ठिई पत्रत्ता लंतए कप्पे देवाणं जहन्नेणं दस सागरोवमाई ठिई पनत्ता जे देवा घोसं सुघोस महाघोसं नंदिघोसं सुसरं मनोरमं रम्म सम्मगं रमणिनं मंगलावत्तं वंभलोगवडेंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं दस-सागरोवमाइं ठिई पन्नत्ता ते णं देवा दसण्हं अद्धमासाणं आणति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीससंति वा तेसि णं देवाणं दसहिं वाससहस्सेहिं आहारट्टे समुपजइ संतेगइवा भवसिद्धिया जीवा जे दसहिं भवागहणेहिं सिज्झिम्संति [बुझिस्संति मुचिरसंति परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाण मंतं करिस्संति ।१०/-10 . दसमो समयाओ सफ्तो एक्कारसमो-समवाओ (१९) एक्कारस उवासगपडिमाओ पत्रताओ तं जहा-दंसणसावए कयव्वयकम्मे सामाइअकडे पोसहोववास-निरए दिया वंभयारी रतिं परिमाणकड़े दिआवि राओवि यंभयारी असिणाई विपडभोई मोलिकडे सचित्तपरिणाए आरंभपरिणाए पेसपरिण्णए उद्दिमत्तपरिण्णाए समणभूए वाविभवइ समणाउसो लोगंताओणं एक्कारस एक्कारे जोयणसए अवाहाए जोइसंते पन्नत्ते जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स एककारस एक्कावीसे जोयणसए अबाहाए जोइसे चारं चरइ समणस्स णं भगवओ महावीरस्स एक्कारस गणहरा होत्था तं जहाइंदभूती अग्गिभूती वायुभूती विअते सुहम्मे मंडिए मोरियपुत्ते अकपिए अयलमाया मेतज्जे पभासे मूले नक्खते एक्कारसतारे पत्रत्ते हेट्ठिमगेविजयाणं देवाणं एक्कारसुत्तरं गेविनविमाणसतं भवइत्ति मक्खायं मंदरे णं पव्वए धरणितलाओ सिहरतले एककारसभागपरिहीणे उच्चत्तेणं पत्रत्ते इमीसे णं रयणप्रभाए पुढवीए अत्यगइयाणं नेरइयाणं एक्कारस पलिओयमाई ठिई पन्नता पंचमाए पुढवीए अत्थेगयाणं नेरइयाणं एक्कारस सागरोवमाई ठिई पत्रत्ता असुरकुमाराणं देवाणं अत्येगइयाणं एक्कारस पलिओवमाई ठिई पत्रत्ता सोहमीसाणेसु कप्पेसु For Private And Personal Use Only
SR No.009730
Book TitleAgam 04 Samavao Angsutt 04 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages82
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 04, & agam_samvayang
File Size2 MB
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