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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 11911-1 समवामो - ८८ वणियासमिई मणगुत्ती वइगुत्ती कायगुत्ती वाणमंतराणं देवाणं चेइरुक्खा अट्ठ जोयणाई उड्ढे उत्तेणं पन्नत्ता जंयू णं सुदंसणा अट्ठ जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ता कूडसामली णं गरुलावासे अट्ठ जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ते जंबुदीवस्स णं जगई अट्ठ जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ता अट्ठसामइए केवलिएसमुग्घाए पन्नते तं जहा-पढमे समए दंडं करेइ बीए समए कवाडं कोइ तइए समए मंधं कोइ चउत्थे समए मंथंतराई पूरेइ पंचमे समए मंथंतराई पडिसाहाइ छद्रे समए मंथं पडिसाहरइ सत्तमे समए कवाडं एडिसाहरइ अट्ठपे समए दंड पडिसाहरइ तत्तो पच्छा सरित्थे भवइ पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणिअस्स अट्ठ गणा अट्ट गणहरा होत्या तं जहा 12-91-8-1 (९) सुंभे य सुंभघोसे य वसिढे बंभयारि य सोमे सिरिधरे चेव वीरभद्दे जसे इय (१०) अद्वनखत्ता चंदेणं सद्धिं पमई जोगं जोएंति तं जहा-कत्तिया रोहिणी पुणव्वसू महा चित्ता विसाहा अणुराहा जेट्ठा इमीसे णं रयणप्पहाणए पुढवीए अत्येगइयाणं नेाइयाणं अदु पलिओवपाई ठिई पन्नत्ता चउत्थीए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेाइयाणं अट्ठ सागरोवमाई ठिई पन्नता असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं अट्ठ पलिओचपाइं ठिई पन्नत्ता सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्यंगइयाणं देवाणं अट्ठ पलिओवपाइं टिई पन्नत्ता वंभलोए कप्पे अत्धेगइयाणं देवाणं अट्ठ सागरोदमाई ठिई पन्नत्ता जे देवा अछि अच्चिमालिं वइरोयणं पभंकरं चंदाभं सूराभं सुपइट्टाभं अग्निच्चाभं रिट्ठाभं अरुणाम अरुणत्तरवडेंसगं विभाणं देवत्ताए उववण्णा तेसि णं देवाणं उककोसेणं अट्ठ सागरोवमाई ठिई पत्नत्ता ते णं देवा अट्ठपहं अद्धमासाणं आणमंति वा पाणमंत्ति वा ऊससंति वा नीससंति वा तेसि णं देवाणं अहिं वाससहस्सेहि आहारट्टे समुप्प- जइ संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे अट्ठहिं भगवागहणेहिं सिज्झिस्संति [बुझिस्संति मुच्चि- संति परिनिव्वाहस्सति सव्वदुक्खाण] मंतं करिस्संति 1८18 . अमो समवाओ समत्तो. नवमो-समवाओ । (११) नव बंभचेरगुत्तीओ तं जहा- नो इत्थी-पप्तु-पंडग संसत्ताणि सिज्जासणाणि । सेवित्ता भवइ नो इत्थीणं कहं कहिता भवइ नो इत्थीणं ठाणाई सेवित्ता भवइ नो इत्थीणं इंदियाई मनोहराई मणोरमाइं आलोइत्ता निन्झाइत्ता भवइ नो पणीयरसभोई भवइ नो पाणभोयणस्स अतिमायं आहारइत्ता भवइ नो इत्थीणं पुव्वरयाई पुव्यकीलियाई सुमरइत्ता भघई नो सद्दाणुवाई नो रूपाणुवाई नो गंधाणुवाई नो रसाणुवाई नो फासाणुवाई नो सिलोगाणुवाई नो सापासोक्वपडिबद्धे यावि भवइ नव वंभचेरअगुत्तीओ पनत्ताओ तं जहा- इत्थी-पसु-पंडग-संसत्ताणि सिज्जासणाणि सेवित्ता मवड़ इत्थीणं कह कहित्ता भवई इत्थीणं ठाणाई सेवित्ता भवइ इत्थीणं इंदियाइं मनोहराई मणोरमाई आलोइत्ता निज्झाइत्ता पवइ पणीयरसभोई भवइ पाणभोषणा अतिमायं आहारइत्ता भवइ इत्यी पुज्वरयाई पुवकीलियाई सुमाइत्ता भवइ सद्दाणुवाई रूवाणुवाई गंधाणुवाई रसाणुवाई फासाणुवाई सिलोगाणुवाई सावासोक्खपडिबद्धे यावि भवइ नव बंभचेरा पन्नत्ता तं जहा-।९-१-9-1 (१२) सत्यपरिण्णा लोगविजओ सीओसणिनं सम्मत्तं आवंती धुतं विमोहायणं उवहाणसुयं महपरिण्णा ||२||-1 For Private And Personal Use Only
SR No.009730
Book TitleAgam 04 Samavao Angsutt 04 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages82
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 04, & agam_samvayang
File Size2 MB
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