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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२ ठाणं • २/१/७४ काइया पण्णत्ता तं जहा-अणंतरोगाढा चेव परंपरोगाढा चेव दुविहा तेउकाइया एण्णत्ता तं जहा-अणंतरोगाढा चेव परंपरोगाढा चेव दुदिहा बाउकाइया पण्पता तंजा -अणंतरोगाढा चेव परंपरोगाढा चेव दुविहा वणस्सइकाइया पण्णता तं जहा-अणंतरोगाढा चेव परंपरोगाढा चेय] दुविहा दव्या पण्णत्ता तं जहा-अणंतरोगाढा चेव परंपरोगाढा चेव ७३|-73 (७४) दुविहे काले पण्णते तं जहा-ओसप्पिणीकाले चैव उस्सप्पिणीकाले चेव दुविहे आगासे पण्णते तं जहा-लोगागासे चेव अलोगागासे चेव ।७४।-74 (७५) नेरइवाणं दो सरीरंगा पण्णता तं जहा-अभंतरगे चेव बाहिरगे चेव अमंतरए कम्मए बाहिरए वेठब्लिए देवाणं [दो सरीरगा पण्णता तं जहा-अब्भंतरगे चेव बाहिरगे चैव अब्भंतरए कम्पए बाहिरए वेउब्बिए। पुढविकाइयाणं दो सरीरगा पण्णता तं जहा-अभंतरगे चैव वाहिरगे चेव अब्अंतरगे कम्मए बाहिरगे ओरालिए जाव वणस्सइकाइयाणं बेइंदियाणं दो सरीरा पण्णत्ता तं जहा-अमंतरगे तेव वाहिरगे चेव अमंतरगे कम्मए अमिंससोणितबद्धे बाहिरगे ओरालिए [तेइंदियाणं दो सरीरा पण्णता तं जहा-अब्अंतरगे चेव बाहिरगे चेव अस्मंतरगे कम्पए अट्ठिमंससोणितबद्धे बाहिरगे ओरालिए चउरिदियाणं दो सरीरा एण्णत्ता तं जहा-अब्भंतरगे चेव बाहिरगे चेव अमंतरंगे कम्पए अमिंससोणितबद्धे बाहिरगे ओरालिए] पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं दो सरीरगा पण्णता तं जहा अब्मंतरगे चेव वाहिरगे चेव अभंतरगे कम्मए अट्ठिमंससोणियणहारुछिराबद्ध वाहिरगे ओरालिए [मणुस्साणं दो सरीरगा पण्णत्ता तं जहा-अब्तरगे चेव चाहिरगे चेव अभंतरगे कम्मए अट्टिमंससोणियोहारुछिराबद्धे वाहिरगे ओरालिए विग्गहगइसमावण्णगाणं नेरइयाणं दो सरीरंगा पण्णत्ता तं जहा तेयए चेव कम्मए चेव निरंतरं जाव येमाणियाणं नेरइयाणं दोहिं टाणेहिं सरीरुप्पत्ती सिया तं जहा-रागेण चेव दोसेण चेवं जाव वेमाणियाणं नेरइयाणं दुट्ठाणणिव्यत्तिए सरीरगे पण्णत्ते तं जहा-रागणिव्यत्तिए चेव दोसणिव्यत्तिए चेव जाव वेमाणियाणं, दो काया पण्पत्ता तं जहा-तसकाए चेव पावरकाए चेव तसकाए दुविहे पण्णत्ते तं जहा-भवसिद्धिए चेव अभवसिद्धिए चेव थावरकाए दुविहे पण्णत्ते तं जहा-मवसिद्धिए चेव अभवसिद्धिए चेव १७५/-76 (७६) दो दिसाओ अमिगिन्झ कप्पति निग्गंधाण वा निग्गंथीण वा पब्बावित्तए पाइ'गं चेव उदीणं चेव [दो दिसाओ अभिगिज्झ कप्पति निग्गंधाण वा निग्गंधीण वा]-मुंडावित्तए सिक्खावित्तए उवट्ठावित्तए संभुंजित्तए संवासित्तए सम्झायमुदिसित्तए सज्झायं समुद्दिसित्तए सज्झायमणुजाणित्तए आलोइत्तए पडिक्कमित्तए निदित्तए गरहित्तए दिउट्टितए विसोहित्तए अकरणयाए अब्मुत्तिए अहारिहे पायाच्छित्तं तवोकम्मं पडिबज्जित्तएपाईणं चैव उदीणं चैव दो दिसाओ अभिगिज्झ कप्पति निगंथाण वा निग्गंधीण वा अपच्छिम मारणंतियसलेहणा-जूसणा-जूसियाणं भत्तपाणपडियाइक्खिताणं पाओवगताणं कालं अणवकंखमाणाणं विहरित्तए तं जहा-पाईणं देव उदीणं देव ७६।-76 बीए ठाणे पटमो उद्देसो समत्तो . For Private And Personal Use Only
SR No.009729
Book TitleAgam 03 Thanam Angsutt 03 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages170
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 03, & agam_sthanang
File Size3 MB
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