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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आयारो २/३/२/४५७ वोच्छिन्नसिणेहे मे काए तहप्पगाएं कार्य आमज्जेज वा जाव पयावेज वा तओ संजयामेव ॥ ३४५॥ - 122 गामागामं (४५७) से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइजमाणे नो परेहिं सद्धिं परिजविय परिजविय गामाणुगामं दूइजेज्जा तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइजेज्जा ।३४६। - 123 ( ४५८ ) से भिक्खू वा भिक्खुणी या गामाणुगामं दूइजमाणे अंतरा से जंघासंतारिमे उदए सिया से पुव्वामेव ससीसोवरियं कायं पादे य पमज्जेज्जा पमज्जेत्ता सागारं भत्तं पञ्चखाएजा पञ्चखाएता एगं पायं जले किया एवं पाय थले किया तओ संजयामेव जंघासंतारिने उदए अहारियं रीएजा से भिक्खू वा भिक्खुणी बा जंघासंतारिमे उदगे अहारियं रीयमाणे नो हत्येण हृत्य पाएण पायं काएण कार्य आसाएजा से अणासायमाणे तओ संजयामेव जंघासंतारिमे उदए अहारियं रीएज्जा से भिक्खू वा भिक्खुणी वा जंघा - संतारिमे उदए अहारियं रीयमाणे नो सायं वडियाए नो परदाह - वडियाए महइमहालवंसि उदगंसि कार्य विउसेज्जा तओ संजयामेव जंघासंतारिने उदए अहारियं रीएज्जा अह पुणेवं जाणे- पारसिया उदगाओ तीरं पाउणित्तए तओ संजयामेव उदउल्लेण वा ससणिद्वेण वा काएण दगतीरए चिट्ठेज्जा से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उदउल्लं बा कार्य ससणिद्धं बा कार्य नो आमज्जेज वा पमजेज वा अह पुणेवं जाणेचा विगतोदए मे काए छिण्णसिणेहे मे काए तहप्पगारं कार्यं कामज्जेज्ज वा [पमज्जेज वा संलिहेज्जा वा निल्लिहेज्जा वा उव्वलेज्जा वा उब्वट्टेज वा आयाबेज था ] पवावेज वा तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइजेज्जा ॥३४७॥ - 124 (४५९) से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइजामाणे नो मट्टियामएहिं पाएहिं हरियाणि छिंदिय-छिंदिय विकुजिय- विकुज्जिय विफालिए - विफालिय उम्मम्गेणं हरिय-चहाए गच्छेजा जहेयं पाएहिं मट्टियं खिप्पामेव हरियाणि अवहरंतु माइट्ठाणं संफासे नो एवं करेजा से पुव्यामेव अप्पहरियं मग्गं पडिलेहेज्जा तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइजेज्जा से भिक्खू बा भिक्खुणी वा गामाशुगामं दूइजमाणे अंतरा से वप्पाणि वा फलिहाणि वा पागाराणि वा तोरणाणि वा अग्गाणि वा अग्गल -पासगाणि वा गड्डाओ वा दरीओ वा सइ परक्क मे संजयामेव परक्क मेजा नो उज्जय गच्छेजा केवली बूया आयाणमेयं से तत्थ परक ममाणे पयलेज वा पवडे या से तत्व पयलमाणे वा पदडमाणे या रुक्खाणि वा गुच्छाणि वा गुम्पाणि या लयाओ वा बल्लीओ वा तणाणि वा गहणाणि वा हरियाणि वा अवलंबिय- अवलंबिय उत्तरेज्जा जे तत्थ पाडिपहिया उवागच्छंति ते पाणी जाएजा तओ संजयामेव अवलंबिय-अवलंबिय उत्तरेचा तओगामाणुगामं दूइजेज्जा से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइजमाणे अंतरा से जवसाणि या सगडाणि या रहाणि वा सचकाणि या परचक्काणि या सेणं या विरूवरूवं सण्णिविढं पेहाए सइ परक्क मे संजयामेव परक्क मेज्जा नो उज्जयं गच्छेजा से णं परो सेणागओ वएज्जा आउसंतो एस णं समणे सेणाए अभिणिचारियं करेइ से णं बाहाए गहाय आगसह से णं परो खाहाहिं गहाय आगसेज्जा तं नो सुमणे सिया नो दुम्मणे सिया नो उच्चदयं भणं नियच्छेजा नो तेसिं बालाण घाताए वहाए समुट्ठेज्जा अप्पुस्सुए अबहिलेस्से एगंतगएणं अप्पाणं वियोसेज समाहीए तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइजेज्जा | ३४८ | - 125 (४६०) से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अंतरा से पाहिपहिया उवागच्छेज्जा तेणं पाड़िपहिया एवं वदेज्जा आउसंतो समणा केवइए एस गामे वा नगरे वा खेडे वा कव्वडे वा मडंबे - For Private And Personal Use Only -
SR No.009727
Book TitleAgam 01 Ayaro Angsutt 01 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages130
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 01, & agam_acharang
File Size3 MB
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