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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुयक्पो- १, अज्झयणं-३, उद्देसो-३ परिव्वए पुरिसा तुममेव तुमं मित्तं किं दहिया मित्तमिच्छसि 1992/- 117 (१३१) जं जाणेज्जा उच्चालइयं तं जाणेज्जा दूरालइचं जं जाणेज्जा दूरालइयं तं जाणेज्जा उच्चालइयं पुरिसा अत्ताणमेव अभिणिगिज्झ एवं दुक्खा पमोक्खसि पुरिसा सबमेव समभिजाणाहि सच्चस्त आणाए उवट्ठिए से मेहावी मारं तरति सहिए धम्ममादाय सेयं समणुपस्सति 19981-118 (१३२) दुहओ जीविवस्स परिवंदण माणण-पूयणाए जंसि एगे पमादेति 1920/- 119 ( १३३ ) सहिए दुक्खमत्ताए पुट्ठो नो भंझाए पासिमं दविए लोवालोव - पवंचाओ मुच्चई - ति बेमि 19291-120 १५ तए अज्झयणे तइओ उद्देसो समत्तो -: च उ त्थो उसो : (१३४) से यंता कोहं च माणं च मायं च लोभं च एवं पासगस्स दंसणं उबरयसत्यस्स पलियंतकरस्स आयाणं निशिद्धा ? सगडटिम । १२२/- 121 (१३५) जे एवं जाणइ से सव्वं जाणइ जे सव्वं जाणइ से एवं जाणइ 19२३1-122 ( १३६) सव्वतो पमत्तस्स भयं सव्वतो अप्पमत्तस्स नत्थि भयं जे एगं नापे से बहु नामे जे बहुं नामे से एगं नामे दुक्खं लोयस्स जाणित्ता वंता लोगस्स संजोगं जति वीरा महाजाणं परेण परं जंति नायकंखंति जीविवं |१२४1-123 ( १३७ ) एवं विगिंचमाणे पुढो विगिंचइ पुढो विगिंचमाणे एवं विगिंचइ सड्ढी आणाए मेहावी लोगं च आणाए अभिसमेच्चा अकुतोभयं अस्थि सत्यं परेण परं नत्थि असत्यं परेण परं 19२५/- 124 ( १३८) जे कोहदंसी से माणदंसी जे माणदंसी से मायदंसी जे मायदंसी से लोभदंसी जे लोभदंसी से पेजदंसी जे पेजदंसी से दोसदंसी जे दोसदंसी से मोहदंसी जे मोहदंसी से गव्मदंसी जे गव्मदंसी से जम्मदंसी जे जम्मदंसी से मारदंसी जे मारदंसी से निरचदंसी जे निरयदंसी से तिरियदंसी जे तिरिवदंसी से दुक्खदंसी से मेहावी अभिनिवट्टेजा कोहं च माणं च मायं च लोहं च पेनं च दोसं च मोहं च गमं च जम्मं च मारं च नरगं च तिरियं च दुक्खं च एवं पासगस्स दंसणं उवरयसत्यस्स पलियंतकरस्स आयाणं निसिद्धा सगड किपत्थि उवाही पासगस्स ण विजइ नत्थि ति बेमि । १२६/- 125 • तइए अज्झयणे चउत्यो उद्देसो समत्तो तइयं अज्ायणं समत्तं चउत्थं अज्झयणं - सम्मत्त -: पढ मो - उसा : (१३९) से बेमि - जे अईया जे य पडुप्पन्ना जे य आगमेस्सा अरहंता भगवंतो ते सच्चे एवमाइक्वंति एवं भा ंति एवं पण्णवेंति एवं परुवेति सव्वे पाणा सव्वे भूता सव्वे जीवा सब्वे सत्ता न हंतव्वा न अज्जावेयच्चा न परिघेतव्या न परितावेयव्वा न उद्दवेयच्या एस धम्मे युद्धे निइए सासए समिच सोयं खेचण्णेहिं पवेइए तं जहा- उट्ठिएस वा अणुट्ठिएस वा उवट्ठिएस वा अणुवट्ठिएसु वा उवरयदंडेसु वा अणुवरयदंडेसु वा सोबहिएसु वा अणोवहिएसु वा संजीगरएसु वा असंगोगरएसु वा तच्चं चेयं तहा चेयं अस्ति चेयं पवुचइ |१२७/- 126 For Private And Personal Use Only
SR No.009727
Book TitleAgam 01 Ayaro Angsutt 01 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages130
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 01, & agam_acharang
File Size3 MB
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