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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पक्खंपो-१, अन्द्रयणं-१, उद्देसो-३ (२०) जाए सद्धाए निरखंतो तमेवअणुपालिया विजहित्तु विसोत्तियं ।२०। -19 (२१) पणया वीरा महाबीहिं ।२१1-20 (२२) लोगं च आणाए अभिसपेच्चा अकुतोभयं ।२२-21 (२३) से वेमि-नेव सयं लोग अटमाइक्खेज्जा नेव अत्ताणं अटमाइक्खेज्जा जे लोयं अभाइक्खड़ से अत्ताणं अमाइक्खइ जे अत्ताणं अमाइक्खइ से लोयं अब्माइक्खइ।२३ -22 (२४) लजमाणा पुढो पास अणगारा मोत्ति एगे पवयमाणा जमिणं विरूवरुवेहिं सत्येहिं उदय-काम-समारंभेणं उदय-सत्यं समारंभपाणे अण्णे अणेगरुवे पाणे विहिंसति तत्थ खलु भगवता परिण्णा पवेदिता इमस्स चेव जीवियस्स परिवंदण-माणण-पूयणाए जाईमरण-मोयणाए दुक्खपडिघायहेर्ड से सयमेव उदय-सत्यं समारंभति अण्णेहिं वा उदय-सत्यं समारंभावेति अन्ने वा उदय-सत्यं समारंभंते समणुजाणति तं से अहियाए तं से अवोहीए से तं संबुज्झमाणे आयाणीय समुट्ठाए सोचा भगवओ अणगाराणं वा अंतिए इहमेगेसिं णायं भवति-एस खलु गंथे एस खलु मोहे एस खलु मारे एस खलु निरए इछत्थं गढिए लोए जमिणं विरुवरुवेहि सत्थेहिं उदय-काम-समारंभेणं उदयसत्थं समारंभमाणे अण्णे अणेगरुवे पाणे विहिंसति सेि बेमि-अप्पेगे अंधसभे अप्पेगे अंधमच्छे अप्पेगे पायमचे अप्पेगे पायमच्छे अप्पेगे संपमारए अप्पेगे उद्दवए) से वेमि-संति पाणा उदय-निस्सिया जीवा अणेगे ।२४1-23 (२५) इह च खलु भो अणगाराणं उदयं-जीवा वियाहिया सत्थं चेत्थं अणुवीइ पास ।२५1-24 (२६) पुढो सत्थं पवेइयं ।२६1-25 (२७) अदुवा अदिन्नादाणं ।२७1-28 (२८) कप्पइ णे कप्पइणे पाउं अदुवा विभूसाए ।२८1-27 (२९) पुढो सत्येहि विउद्भृति ।२९।- 28 (३०) एत्यवि तेसिं नो निकरणाए ।३०1-29 (३१) एत्थ सत्यं समारंभमाणस्स इयेते आरंमा अपरिण्णाया मयंति एत्थ सत्थं असमारंभमाणस्स इचेते आरंभा परिण्णाया पर्वति तं परिण्णाय मेहाची नेव सयं उदय-सत्थं समारंभेजा नेवत्रेहिं उदय-सत्यं समारंभावेजा उदय-सत्यं समारंभंतेवि अन्ने न समणुजाणेजा जस्सेते उदय-सस्थ-समारंभा परिणाया भवंति से ह मुणी परिण्णात-कम्मे-तिवेमि ।३१1-30 पदमे अज्झयणे तइओ उदेसो समतो. -: च उत्थो - उदे सो :(३२) से वेमि नेव सब लोगं अमाइक्खेजा नेव अत्ताणं अन्माइखेज्जा जे लोग अभाइक्खड़ से अत्ताणं अमाइक्खइ जे अत्ताणं अमाइक्खइ से लोगं अभाइक्खइ ।३।। (३३) जे दीहलोग-सत्यस्स खेयपणे से असत्यस्स खेयण्णे जे असत्थस्स खेयण्णे से दीहलोग-सत्थस्स खेयण्णे ।३३।.32 (३४) धीरेहिं एवं अभिभूय दिळं संजतेहिं सया जतेहिं सया अप्पमत्तेहिं ॥३४|-33 (३५) जे पमत्ते गुणट्ठिए से हु दंडे पवुवति ।३५१-34 (३६) तं परिण्णाय मेहावी इयाणिं नो जम्हं पुव्वमकासी पमाएणं ।३६।-35 For Private And Personal Use Only
SR No.009727
Book TitleAgam 01 Ayaro Angsutt 01 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages130
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 01, & agam_acharang
File Size3 MB
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