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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आयारो - 9/9/9/१२ (१२) एयाचंति सव्वावंति लोगंसि कम्म-समारंभा परिजाणियव्या भवंति १२-12 (१३) जस्सेते लोगसि कम्म-समारंभा परिण्णाया भवंति से हु मुणी परिण्णायकम्मेत्ति वेमि |१३|-13 • पढमेअझयणे पढमो उद्देसो सपत्तो . -: बी ओ - उ सो :(१४) अट्टे लोए परिजुण्णे दुस्सबोहे अविजाणए अस्सि लोए पव्वहिए तत्थ तत्य पुढो पास आतुरा परिताति ।१४|-14 (१५) संति पाणा पुढो सिया लजमाणा पुढो पास अणगारा मोत्ति एगे पवयमाणा जमिणं विरुवरुवेहिं सत्थेहिं पुदवि कम्म-समारंभेणं पुढवि-सत्यं समारंभेमाण अणेवणेगरुवे पाणे विहिंसति ।१५।-15 (१६) तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेइया इमस्स चेव जीवियस्स परिवंदण-माणण - पूयणाए जाई-मरण मोयणाए दुक्खपडिधायहेउं से सयमेव पुढवि-सत्यं समारंभइ अण्णेहि वा पुढवि-सत्यं समारंभावेइ अग्ने वा पुढवि-सत्यं समारंभंते समणुजाणइ ।१६।-15 R (१७) तं से अहिआए तं से अबोहीए से तं संवुज्झमाणे आवाणीयं समुहाए सोचा खलु भगवओ अणगाराणं वा अंतिए इहमेगेसि णातं भवति-एस खलु गंथे एस खलु मोहे एस खलु मारे एस खलु निरए इच्चत्यं गढिए लोए जमिणं विरुवरुवेहिं सत्येहिं पुढवि-कम्मसमारंभेणं पुढवि-सत्थं समारंभेमाणे अण्णे अणेगरुवे पाणे विहिंसा से बेमि. अप्पेगे अंधमधे अप्पेगे अंघमच्छे अप्पेगे पायमधे अप्पेगे पायपच्छे अप्पेगे गुप्फममे अप्पेगे गुप्फमच्छे अप्पेगे अंधमधे(२) अप्पेगे जाणपटो(२) अप्पेगे ऊरुपदभे(२) अप्पेगे कडिमटमे(२) अप्पेगे नाभिमभे(२) अप्पेगे उदरमटमे(२) अप्पेगे पासभन्मे(२) अप्पेगे पिहिमभे(२) अप्पेगे उरमन्भे(२) अप्पेगे हिययमभे(२) अप्पेगे थणमटमे(२) अप्पेगे खंधमटमे(२) अप्पेगे याहुमदभे(२) अप्पेगे हत्थमदभे(२) अप्पेगे अंगुलिमटमे(२) अप्पेगे नह मल्म(२) अप्पेगे गीवमन्मे (२) अप्पेगे हणुमध्ये(२) अप्पेगे होठ्ठमभे(२) अप्पेगे दंतमदभे (२) अप्पेगे जिब्भमभे(२) अप्पेगे तालुमटमे(२) अप्पेगे गलमब्भे(२) अप्पेगे गंडमटमे(२) अप्पेगे कण्णमदमे (२) अप्पेगे नासमब्मे(२) अप्पेहे अच्छिमटमे(२) अप्पेये भमुहमदमे (२) अप्पेगे निडालमभे (२) अप्पेगे सीसमभे(२) अप्पेगे संपमारए अप्पेगे उद्दवए एत्य सत्यं समारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा अपरिष्णाता भवंति ।१७।-16 (१८) एस्थ सत्थं असमारंभमाणस्स इन्चेते आरंभा परिष्णाता भवंति तं परिण्णाय मेहाची नेव सयं पुढवि-सत्यं समारंभेजा नेवण्णेहिं पुढवि-सत्यं समारंभावेजा नेवण्णे पुढविसत्थं समारंभंते समणुजाणेजा जस्सेते पुढवि-काम-समारंभा परिष्णाता भवंति से हु मुणी परिण्णात-कम्मे -त्ति वेमि ।१८1-17 • पडमे अझयणे बीओ उद्देसो समत्तो. -:त इ ओ - उद्दे सो :(१९) से वेमि - से जहावि अणगारे उजुकड़े निकायपडिवणे अमायं कुव्वमाणे विवाहिए ।१९।-18 For Private And Personal Use Only
SR No.009727
Book TitleAgam 01 Ayaro Angsutt 01 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages130
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 01, & agam_acharang
File Size3 MB
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