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________________ १०२ श्री त्रिभंगीसार जी प्रश्न- अब छटवें विन्द कमल का स्वरूप बताईये ? समाधान-छटवें विन्द कमल की अपूर्व विशेषता महा महिमा है । यह दोनों आँखों के बीच,भूमध्य पर जहाँ तिलक लगाते हैं,यह विन्द कमल है । इसमें साधक की एकाग्रता, निराकुलता , नि:शल्यता , निश्चिन्तता होना आवश्यक है । कोई भी शल्य विकल्प न हो, आसन की और दृष्टि की एकाग्रता दृढ़ता आवश्यक है। इसमें भी वही मंत्र जप के माध्यम से मन को एकाग्र करना और विन्द कमल में प्रतिष्ठित करना, इसकी भी छह पंखुड़ी होती हैं। जिसमें - लखन सी अर्क, लीन सी अर्क, भद्र सी अर्क, मै उवन सी अर्क, सहज सी अर्क और पै उवन सी अर्क की साधना की जाती है , इस विन्द कमल की साधना सिद्ध होने पर जय जयकार मच जाती है। साधक परम शान्ति के सागर में निमग्न हो जाता है। इसकी विशेषताएँ अपूर्व हैं,जैसे भौंह मध्य हमेशा शान्त और शीतल रहता है। इस कमल में सदैव ओला, बर्फ जैसी शान्त शीतल लहरें निकलती रहती हैं। जिससे साधक हमेशा शान्त आनन्द में प्रसन्न रहता है, सर्वार्थसिद्धि हो जाती है। यह साधक जिस भाव से जिसकी तरफ दृष्टि उठाकर देख ले, वैसा ही सब हो जाता है। जैसे भाव करता है वैसा ही सब होता है। इसके नेत्रों में संमोहन जैसी स्थिति हो जाती है। इसमें बाधक कारण सिद्धियाँ हैं, सिद्धियों में फँसने पर स्थिति बिगड़ जाती है। प्रश्न- यह छह अर्क का स्वरूप बताईये? समाधान-१. लखन सी अर्क - अपने आत्मा के असाधारण गुणों को प्रगट प्रत्यक्ष देखना, अनुभव करना लखन सी अर्क है। २.लीन सी अर्क- पर द्रव्य और पर भावों से अपने उपयोग को हटाकर अपने ध्रुव स्वभाव में स्थिर करना लीन सी अर्क है। २. भद्र सी अर्क- भद्रता, भव्यता मोक्षमार्ग की योग्यता से युक्त स्वानुभूति का प्रकाश भद्र सी अर्क है। १.मै उवन सी अर्क - निर्विकल्प समाधि की स्थिति होना मै उवन सी अर्क १०३ गाथा-५२,५३,५४ उसमें प्रतिष्ठित होना पै उवन सी अर्क है। बस यही साधु पद की स्थिति है, इसके बाद ब्रह्म कमल की साधना करके सिद्ध, मुक्त, निर्वाण हो जाता है। साधना की अपेक्षा मतिज्ञान को कंठकमल में और श्रुतज्ञान को हृदय कमल में बताया गया है। मतिज्ञान की भावना- कण्ठ में कमल चिन्तवन करें। उस कमल के मध्य में ॐ मंत्र को चमकता हुआ विराजमान करें व उसके द्वारा शुद्धात्मा के स्वरूप की भावना भायें। स्वात्मानुभव का प्रकाश होना सम्यग्दर्शन सहित यथार्थ मतिज्ञान है। यहाँ मति नाम मनन के लिए है। श्रुतज्ञान की भावना- हृदय कमल में ॐ ह्रीं मंत्र की स्थापना करके उसके द्वारा ज्ञानमयी शुद्धात्मा की भावना भायें, जिससे अतीन्द्रिय आत्मा में स्थिरता हो जाए स्वसंवेदन हो जाए, यही श्रुतज्ञान है । द्वादशांग श्रुतज्ञान का भाव यही है कि शुद्धात्मा का अनुभव हो जावे। श्रुत का अभिप्राय अनुभव ज्ञान है। अवधिज्ञान की भावना- सम्यक्चारित्रसे अवधिज्ञान का भाव होता है। षट्कमल में ॐ ह्रीं श्रीं स्वरूप शुद्धात्मा का चिन्तवन करते हुए जब अपने आत्मस्वरूप में स्थिरता हो जाए तब अवधिज्ञान का प्रकाश होता है। षट्कमल का जागरणध्यान शक्ति के द्वारा किया जाता है, यह सभी जानते हैं कि हमारा मस्तिष्क एक प्रकार का बिजलीघर है और उस बिजली की प्रमुख धारा का नाम 'मन' है। मन की गति चंचल और बहुमुखी होती है। वह हर घड़ी चंचल और उछल-कूद में व्यस्त रहता है । इस उथल-पुथल के कारण उस विद्युत पुंज का एक स्थान पर केन्द्रीकरण नहीं होता, जिससे कोई महत्वपूर्ण कार्य सम्पादन हों । इसके अभाव में जीवन के क्षण ऐसे ही नष्ट होते रहते हैं। यदि उस शक्ति का एकत्रीकरण हो जाता है, उसे एक स्थान पर संचित कर दिया जाता है तो आतिशी शीशे द्वारा आग की लपटें उठने लगना, जैसे दृश्य उपस्थित हो जाते हैं। ध्यान एक ऐसा सूक्ष्म विज्ञान है जिसके द्वारा मन की बिखरी हुई बहुमुखी शक्तियाँ एक स्थान पर एकत्रित होकर एक कार्य में लगती है। फल स्वरूप यहाँ असाधारण शक्ति का स्रोत प्रवाहित होता है। ध्यान बारा मन: क्षेत्र की केन्द्रीभूत इस विजली से, साधक षट्चक्रों का वेधन कर सकता है। इस प्रकार ज्ञान, ध्यान, योग, साधना द्वारा साधक इन भावों से कर्मासव का निरोध करता है। ५. सहज सी अर्क - अपने परिपूर्ण सहज स्वभाव की स्वानुभूति से सुशोभित होना सहज सी अर्क है। ६.पै उवन सी अर्क-अपने परिपूर्ण सत्य ध्रुव प्रमाण स्वरूप का अनुभव करके
SR No.009723
Book TitleTribhangi Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanand Swami
PublisherTaran Taran Sangh Bhopal
Publication Year
Total Pages95
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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