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________________ 04 श्री आपकाचार जी गाथा-१७ Oo देखने में आती है। जो हमेशा विकल अर्थात् विकल्पों में दु:खी रहते हैं, वह विकलत्रय हैं, जिन्हें सात नरक कहते हैं- रत्नप्रभा,शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पंकप्रभा,धूम होते हैं। "विकलस्य विकलत्रय"(तारण स्वामी) पंचेन्द्रिय तिर्यंच में सैनी-असैनी प्रभा, तम प्रभा, महातम प्रभा, यह सात नरकों के नाम हैं। जिनमें पहले नरक से दोनों प्रकार के होते हैं, इन सब के दुःख प्रत्यक्ष देखने में आते हैं। चूहे को बिल्ली . पाँचवें नरक तक उष्ण वेदना होती है, छठे और सातवें में शीत वेदना होती है। मारती है, बिल्ली को कुत्ता मारता है, कुत्ता को भेड़िया मारता है, भेड़िया को शेर पहले नरक की जघन्य आयु दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट आयु एक सागर की होती मारता है, इसी प्रकार एक पशु दूसरे पशु का घात करता है। चिड़िया छोटे-छोटे है। दूसरे नरक की उत्कृष्ट आयु तीन सागर, तीसरे नरक की सात सागर, चौथे की। कीड़े मकोड़े खाती है, मकड़ी, मख्खी-मच्छर खाती है तथाशीत-उष्ण,ताड़न, दस सागर, पाँचवें की सत्रह सागर, छटवें की बाईस सागर और सातवें की तैंतीस बध-बन्धन के दु:ख प्रत्यक्ष देखने में आते हैं। इस प्रकार के यह दु:ख, यह जीव इस सागर की आयु होती है। पिछले नरकों में जो उत्कृष्ट आयु है यही अगले नरकों की तिर्यंच गति में भोगता है, यहाँ से निकलता है तो अति संक्लेश भाव से मरने के कारण जघन्य आयु होती है। जैसे-पहले नरक की उत्कृष्ट आयु एक सागर की है, यही नरक में चला जाता है और वहाँ जो दु:ख भोगता है वह आगे वर्णन करते हैं। आयु दूसरे नरक की जघन्य आयु होती है। नारकियों की जितनी आयु होती है, २. नरक गति- नरक में जाने का कारण और वहाँ के दु:खों का वर्णन करते उतने समय तक उन्हें वहाँ रहना और दुःख भोगना पड़ते हैं, वहाँ अकाल मरण हैं। पाप कर्म के उदय से यह जीव नरक में जन्म लेता है। जो प्राणियों का घात नहीं होता।नारकी सब नपुंसक ही होते हैं, वहाँ स्त्री-पुरुष का कोई भेद नहीं होता, करता है, झूठ बोलता है, दूसरों का धन हरता है, परनारियों को बुरी निगाह से वैक्रियक शरीर होता है। वहाँ के बिलों की संख्या-पहले नरक में ३० लाख बिल, देखता है, परिग्रह में आसक्त रहता है। बहुत क्रोधी, मानी, कपटी और लालची। दूसरे नरक में २५ लाख बिल, तीसरे नरक में १५ लाख बिल, चौथे नरक में २० होता है, कठोर वचन बोलता है। दूसरों की चुगली करता है, रात-दिन धन संचय लाख बिल,पाँचवेंनरक में ३ लाख बिल,छटे में पाँच कम एक लाख बिल और सातवें में लगा रहता है, साधुओं की निन्दा करता है, नीच और खोटी बुद्धि वाला है, कृतघ्नी में पाँच बिल, ऐसे ८४ लाख बिल होते हैं जिनमें यह पैदा होते और वहाँ से नीचे की है, बात-बात पर शोक तथा दु:ख करना जिसका स्वभाव है, वह जीव नरक गति ओर गिरते हैं। नारकियों को क्रूर सिंह व्याघ्रादि अनेक प्रकार के रुपधारण करने की जाता है। वहाँ पाँच प्रकार के दुःख सहता है - १. असुर कुमारों द्वारा दिया गया - विक्रिया होती है। नारकियों का शरीर वैक्रियक होने पर भी उनके शरीर के वैक्रियक दु:ख । २. शारीरिक दुःख ।३. मानसिक दु:ख । ४. क्षेत्र से उत्पन्न होने वाला पदगल मल-मूत्र, कफ, वमन,सड़ा हुआ माँस, हाड़ और चमड़ी वाले औदारिक शीत-उष्ण आदि का दु:ख । ५. परस्पर में दिया गया दु:ख । यह सब निरन्तर शरीर से भी अत्यन्त दुर्गंधित अशुभ होते हैं। भोगना पड़ते हैं। : तीसरे नरक तक अम्ब, अम्बरीष जाति के असुर कुमार देव जाकर नारकी छहढाला में कहा है जीवों को दुःख देते हैं, नारकी आयु पर्यन्त भूख-प्यास की वेदना सहते हैं क्योंकि तहाँ भूमि परसत दु:ख इसो,बीछू सहस उसैं नहीं तिसो। १ वहाँ खाने-पीने को कुछ है ही नहीं, इस प्रकार यह संक्षेप में नरक गति के दुःखों का तहाँ राध श्रोणित वाहिनी, कृमि कुल कलित देह दाहिनी॥ 8 वर्णन किया। सेमर तरु दल जुत असि पत्र, असि ज्यों देह विदारै तत्र। ३. मनुष्य गति-(शरीर उत्पत्ति) मनुष्य शरीर की उत्पत्ति गर्भ में रज और मेरु समान लोह गलि जाय, ऐसी शीत उष्णता थाय ।। वीर्य से होती है, यह दोनों ही अपवित्र हैं। माता के उदर में वीर्य का प्रवेश होने पर १ तिल-तिल कर देह के खण्ड, असुर भिड़ावें दुष्ट प्रचंड। दस दिन पर्यन्त उसकी (वीर्य की) कललदशा होती है। जैसे-ताम्र और चाँदी का सिंधु नीर से प्यास न जाय, तो पण एक न बूंद लहाय॥ रस मिलाने पर जो अवस्था होती है वही अवस्था माता के रज के संयोग से वीर्य की तीन लोक को नाज जुखाय, मिटैन भूख कणा न लहाय। होती है, उसको कलल अवस्था कहते हैं, इसके अनन्तर दस दिन पर्यन्त उसकी ये दु:ख बहु सागर लौ सहे, करम जोग नरगति लहै॥ कलुष अवस्था होती है, तदनन्तर दस दिन पर्यन्तर स्थिरता आती है, यह तीन इस प्रकार के दु:ख नरकगति में यह जीव भोगता है, नरक में सात स्थान होते. अवस्थायें प्रथम मास में होती हैं। veaadierra
SR No.009722
Book TitleShravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanand Swami
PublisherGokulchand Taran Sahitya Prakashan Jabalpur
Publication Year
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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