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________________ नमः' मंगल वाक्य से प्रारंभ होने के कारण उसका नाम सिद्ध मातृका पड़ा। सहयोगं वहति तदुच्चारणार्थमेव । अन्यथा एतानि चत्वार्यक्षराणि उच्चारयितुं न भगवज्जिनसेनाचार्य ने महापुराण रचने का उपक्रम किया था, किंतु दैव दुर्विपाक। शक्यते " से शक सं.७७० में उनका निधन हो गया। उस समय तक उन्होंने आदि पुराण भगवान के मुख से निकली अक्षरावली सिद्धम् नम: इस मंगल वाक्य से के १०३८० श्लोकों की रचना की थी, उनकी समाधि के उपरान्त शेष १६२० प्रारंभ हुई अत: उसे सिद्ध मातृका कहा गया। वह अकार से हकार पर्यन्त थी और श्लोक उनके शिष्य श्री गुणभद्र जी ने लिखे हैं, इसमें भगवान ऋषभदेव का संपूर्ण शुद्ध मुक्तावली के समान थी। स्वर और व्यंजन दो भेदों से युक्त थी।शुद्ध मुक्तावली जीवन दर्शन कराया गया है। उत्तर पुराण की रचना गुणभद्र ने की है उसमें शेष का अर्थ है-मोती के दाने । मोती आवदार होता है तो क्या इसका अर्थ है कि वे २३ तीर्थंकरों का जीवन वर्णित है। भगवज्जिनसेनाचार्य एक महान आचार्य अक्षर मोती से लिखे गये थे? जहाँ तक संभव है कि वह मुक्तावली के समान दार्शनिक और कवि थे। उन्होंने आदि पुराण में लिखा है कि जब भगवान ऋषभदेव पवित्र थी। यदि आज के शब्दों में लिखा जाये तो पूर्ण रूपेण वैज्ञानिक थी। ऐसी ने अपनी बड़ी पुत्री ब्राह्मी को लिपि का ज्ञान कराया तो 'ॐ नम: सिद्धम्' से ही वैज्ञानिक अक्षरावली विश्व की कोई अन्य नहीं है। इस अक्षरावली को मेधाविनी 'बारहखड़ी' का प्रारंभ किया, वह उद्धरण इस प्रकार है - ब्राह्मी ने धारण किया था। भगवान ने अपनी दूसरी पुत्री को अंक विद्या (गणित) न बिना वाङ्गमयात् किंचिदस्ति शास्वं कलापि वा। प्रदान की और उसका प्रारंभ भी 'नम: सिद्धम्' से हुआ। भगवज्जिनसेनाचार्य की ततो वाङ्गमयमेवादी वैद्यास्ताभ्यामुपदिशात् ॥ १०४ ॥ मान्यता थी कि कोई भी विद्या सीखनी हो उसका प्रारंभ 'ॐ नम: सिद्धम्' से ही वाङ्गमय के बिना न तो कोई शास्त्र है और न कोई कला है, इसलिए प्रभु। होता था। ऋषभदेव उन दोनों पुत्रियों को सबसे पहले वाङ्गमय का ही उपदेश देते हैं। पद्मचरित (पद्मपुराण) संस्कृत जैन कथा साहित्य का सर्वाधिक प्राचीन ततो भगवतो वक्त्रानिः सृताम् अक्षरावलीम् । ग्रंथ है। इस ग्रंथ के रचयिता श्री रविषेणाचार्य, इस ग्रंथ के रचनाकाल के संबंध में सिद्धं नमः इति व्यक्त मंगलां सिद्ध मातृकाम् ॥ स्वयं कहते हैं कि जिन सूर्य श्री वर्धमान जिनेन्द्र के मोक्ष जाने के बाद एक हजार अकारादि हकारान्तं शुद्धां मुक्तावलीमिव । दो सौ वर्ष छह मास बीत जाने पर श्री पदममनि (राम) का यह चरित लिखा गया स्वर व्यंजन भेदेन बिधा भेवमुपेयुपीम् ॥ है। इसी आधार पर पं. श्री नाथूराम प्रेमी ने जैन साहित्य और इतिहास में लिखा अयोगवाह पर्यन्ता सर्व विद्या सुसंगताम् । कि विक्रम संवत् ७३३ के लगभग पद्म की रचना पूर्ण हुई थी। संयोगाक्षर संभूति नैक बीजाक्षरैश्विताम् ॥ श्री रविषेणाचार्य जी के पद्मचरित से ऐसा प्रतीत होता है कि उस समय समवादीवधत् ब्राह्मी मेधाविन्मति सुन्दरी। विद्याभ्यास मौखिक और लिखित दोनों रूपों में किया जाता था। प्रारंभ में वर्णमाला सुन्दरी गणित स्थानं क्रमैः सम्यगधारयत् ॥ सीखना आवश्यक था और ॐ नम: सिद्धम् से इसका प्रारंभ होता था। श्री ॥ महापुराण १६ वा सर्ग,१०४-१०८ ॥ रविषेणाचार्य ने एक स्थान पर लिखा है कि चक्रपुर के महाराज चक्रधर की कन्या एक मराठी ग्रंथ 'जैन धर्माचे प्रचीनत्व' के लेखक तात्या साहेब चोपड़े ने चित्रोत्वा ने गुरु के घर जाकर खड़िया मिट्टी से ॐ नम: सिद्धम् के साथ वर्णमाला पृष्ठ १७८ पर इन उपर्युक्त श्लोकों की रोचक और महत्वपूर्ण व्याख्या सीखी।१० की है इन सभी ग्रंथों के अतिरिक्त अपभ्रंश भाषा के प्रसिद्ध कवि पुष्पदंत जी ने "या नंतर भगवंताच्या मुख कमलापासूनंनिधा लेली. 'नम: सिद्धम्' या महापुराण की रचना की थी। यह ग्रंथ श्री माणिकचंद दिगम्बर जैन ग्रंथमाला उच्चरने जिचें मंगल व्यक्त झाले आहे, जिला सिद्ध मातृका असे नांव आहे. म्हणजे । बम्बई से सन् १९३७-४१ में प्रकाशित हो चुका है। इसमें त्रेषठ शलाका के 'ॐ नम: सिद्धम्' हे मंगल जिला आहे अशी व मुक्तावली प्रमाणे अत्यन्त शुद्ध महापुरुषों का चरित्र वर्णन किया गया है। पंडित नाथूराम प्रेमी के अनुसार पुष्पदंत स्वर व्यंजन या भेदाने दोन प्रकारची असणारी अयोग पर्यन्त ची आहे. अ: इति ८. जैन धर्माचे प्राचीनत्व, तात्या साहेब, मराठी ग्रंथ, पृष्ठ १७८ विसर्जनीय: एक इति जिह्वामूलीय: ष्पइत्युपध्मानीयः, अं इत्यनुस्वारः एतानि ९. जैन साहित्य और इतिहास पृष्ठ ८५, मुंबई प्रकाशन, द्वि. सं. चत्वारि अक्षराणि विसर्गादीनि केवलानि वर्तते अकार, पकार, ककार एतैः १०. रविषेणाचार्यकृत पद्मचरित-२६/७
SR No.009720
Book TitleOm Namo Siddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasant Bramhachari
PublisherBramhanand Ashram
Publication Year
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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