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________________ परमात्मा के और मेरे आत्म स्वभाव में निश्चय नय अपेक्षा किंचित् मात्र भी अंतर नहीं है। अपने इसी ॐकार मयी सत्ता स्वरूप सिद्ध परमात्मा के समान शुद्धात्म स्वभाव की अनुभूति, अपने में एकत्व होकर करना ही सिद्ध स्वभाव को नमस्कार है। यही यथार्थ नमस्कार है, इस नमस्कार की महिमा यह है कि जिस सिद्ध स्वभाव और सिद्ध पद को नमस्कार कर रहे हैं वह सिद्ध पद प्रगट हो जाता है, ऐसे शुद्ध सिद्ध स्वभाव को निर्विकल्प स्वभाव में स्थित होकर नमस्कार करता इस प्रकार शुद्ध सिद्ध स्वभाव का एकत्व अनुभूति से यह पाँच अक्षर ॐ नम: सिद्धम् उत्पन्न हुए हैं, इन पांच अक्षरों की अनुभूति रागादि मोह से रहित शुद्ध स्वभाव की अनुभूति है इसी से जीव संसार के दु:खों से छूटकर सिद्ध मुक्त हो । जाता है। श्री जिन तारण स्वामी ने ॐ नम: सिद्धम् मंत्र के आध्यात्मिक अर्थ पूर्वक मंत्र की सिद्धि की है अर्थात् अपने अनुभव से प्रमाण किया है क्योंकि वे मोक्षमार्गी आध्यात्मिक ज्ञानी योगी साधु थे, उन्हें आत्मोन्मुखी दृष्टि के लक्ष्य से यही अर्थ अभीष्ट है। ॐ नम: सिद्धम् मंत्र की चर्चा करते हुए स्व. ब्र.श्री शीतल प्रसाद जी ने लिखा है-"इस पांच अक्षरी ॐ नम: सिद्धम् मंत्र के वाच्य परम शुद्ध सिद्धात्मा के अनुभव से उत्पन्न पंचम केवलज्ञान तथा साम्यभाव सहित यह भव्य जीव राग-द्वेषादि मोह भावों से छूटकर शुद्ध आत्मिक भाव रूप होकर संसार से पार । उतर जाता है। ॐ नम: सिद्धम् मंत्र के जपने से व ध्याने से, सिद्ध भगवान को भाव नमस्कार करने से, सिद्ध रूप अपने ही आत्मा को अनुभव करने से धर्म ध्यान होता है, फिर शुक्ल ध्यान होता है जिससे चार घातिया कर्मों का नाश होकर केवलज्ञान का व पूर्ण वीतरागता का लाभ होता है। सर्व राग-द्वेष मोहादि छूट जाता है, फिर चार अघातिया कर्म भी नष्ट हो जाते हैं और आत्मा संसार से पार हो मुक्त हो जाता है। यहां तारण स्वामी ने यह प्रेरणा दी है कि मोक्ष के इच्छुक को उचित है कि इस पांच अक्षरी मंत्र के द्वारा सिद्धों का स्वरूप विचार कर अपने आत्मा को सिद्ध स्वरूपमय ध्यावे। आध्यात्मिक शुद्धात्मवादी वीतरागी संत श्री गुरु तारण तरण मंडलाचार्य जी महाराज ने इस प्रकार ॐ नम: सिद्धम की आध्यात्मिक विवेचना कर अ,आ,इ,ई,उ,ऊ,ऋ,ऋ,लू,लू,ए,ऐ,ओ,औ,अं,अहः आदि स्वरों का तथा क ख,ग आदि तेतीस व्यंजनों का भी साधनापरक आध्यात्मिक वर्णन किया है। इस संपूर्ण विवेचन से यह भली भांति स्पष्ट हो रहा है कि प्राचीन समय में विद्यार्थियों को अक्षराम्भ कराने के पहले ॐ नम: सिद्धम् पढ़ाया जाता था जिसे श्री गुरु तारण स्वामी ने भी निश्चित रूप से पढ़ा होगा और उसकी आध्यात्मिक अनुभूति को स्वीकार कर स्वयं के साथ-साथ अनेकों भव्य जीवों के कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया। आचार्य श्री जिन तारण स्वामी ने ज्ञान समुच्चय सार जी ग्रंथ में ॐ नम: सिद्धम् और वर्णमाला का आध्यात्मिक स्वरूप विवेचन किया है तो इससे यह नहीं समझना चाहिए कि श्री जिन तारण स्वामी के समय से ही 'ॐ नम: सिद्धम्' के साथ वर्णमाला का क्रम प्रारंभ हुआ है। इस संदर्भ में स्मरणीय बात यह है कि 'ॐ नम: सिद्धम्' के स्मरण पूर्वक अक्षराम्भ करना यह अत्यंत प्राचीन परंपरा रही है। श्री गुरु तारण स्वामी ने इस मंत्र का आध्यात्मिक अभिप्राय स्वयं के जीवन में जाना,उसका अनुभव किया और ॐ नमः सिद्धम् के साथ संपूर्ण वर्णमाला सिद्ध मातृका का आध्यात्मिक सार संदेश भारत के लोगों को दिया । भारतीय जनमानस पर उनका यह अनंत उपकार है । पूर्वाचार्यों की परंपरा से यह मंत्र अभी तक चला आ रहा है, इसका अर्थ यही है कि 'ॐ नम: सिद्धम्' मंत्र के स्मरण की परंपरा अत्यंत प्राचीन है। कुछ पुरातन विद्वानों का कथन है कि अक्षरावली को सिद्ध मातृका इस कारण से कहते हैं कि उसका प्रारंभ 'ॐ नमः सिद्धम्' जैसे मंगल वाक्य से होता है। ऐसा मानने वालों में ८ वीं शताब्दी में हुए भगवज्जिनसेनाचार्य का नाम अग्रगण्य है। उनकी रचना महापुराण इस बात का प्रमाण है, उन्होंने लिखा है ततो भगवतो वक्त्रानिः सृताम् अक्षरावलीम् । सिद्धम् नमः इति व्यक्त मंगलां सिद्ध मातृकाम् ॥ ॥महापुराण-१६/१०५॥ अर्थात् इसके बाद भगवान के मुख से अक्षरावली प्रकाशित हुई वह सिद्धम् नमः, इस मंगल वाक्य के साथ प्रारंभ हुई इसी कारण वह 'सिद्ध मातृका' कहलाई । अभिप्राय यह हुआ कि अक्षरावली तो पहले से थी, किंतु 'सिद्धम् ७. श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी, श्री तारण तरण जैन तीर्थक्षेत्र निसईजी ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित पृष्ठ ५९. ३. वही,गाथा ७०७ ४. ज्ञान समुच्चय सार,गाथा ७०८ ५. वही,गाथा ७११ ६. ज्ञान समुच्चय सार की टीका ब्र. शीतल प्रसाद जी, गा.७११पृ.३३४ श्री दिगम्बर जैन तारण तरण चैत्यालय ट्रस्ट कमेटी सागर प्रकाशन १९९६ ४२
SR No.009720
Book TitleOm Namo Siddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasant Bramhachari
PublisherBramhanand Ashram
Publication Year
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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