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________________ साधना और मंत्र मंत्र जप के संबंध में श्री नेमिचंद्राचार्य महाराज ने द्रव्य संग्रह ग्रंथ में लिखा नहीं, संसार का ऐसा ही स्वरूप है यह सब अपने अनुभव से ही प्रमाण कर अपना जीवन समता शांति आनंद मय हो जाये यही प्रयोजनीय है। ___ संसार की यह विचित्रता देखकर ही मंत्र दृष्टा ऋषियों ने विश्व को यह अमूल्य सीख दी है कि त्यज्यते रज्यमानेन, राज्येनान्येन वा जनः। भज्यते त्यज्यमानेन, तत्यागोऽस्तु विवेकिनाम् ॥ ॥क्षत्र चूडामणि ॥ अनुरक्त होने से राज्य सम्पदा या अन्य विभूति स्वयं मनुष्य को छोड़ देती। है और विरक्त होने से उसके चरणों में लोटती है अत: विवेकी पुरुषों को उसका त्याग कर देना ही उचित है। __मंत्र के द्वारा जिस इष्ट की आराधना की जा रही है वह पूर्ण वीतरागी निस्पृह है। ऊपर जो शिक्षा है वह उनकी ही देन है, उन्हीं के अनुभव का सार है। उस स्वरूप का विवेचन आगे किया गया है उसकी महिमा का बोध उस विवेचन से होगा कि वह परमात्मा और सिद्ध स्वभाव कितना पुनीत, कितना विशुद्ध और कल्याणकारी है। उन्हीं सिद्ध परमात्मा और सिद्ध स्वभाव की शक्ति का ही यह प्रताप है जो यह मंत्र इतना अद्वितीय है, क्योंकि जड़ की शक्ति से चेतन की शक्ति अपरिमित है। जड़ की शक्ति तो चेतन के हाथ का खेल है वही उसका आविष्कर्ता है और वही उसका रोधक भी है अत: परिपूर्ण आत्म शक्ति से युक्त महापुरुषों की आराधना एवं सिद्ध स्वभाव की अनुभूति से निष्पन्न होने के कारण ॐ नमः सिद्धम् मंत्र अन्य मंत्रों से विशिष्ट है। इसकी विशेषता यह है कि प्राय: मंत्र अत्यंत गूढार्थक होते हैं। उनकी शब्द रचना ऐसी होती है कि उनका उच्चारण करना भी कठिन होता है फिर अर्थ की बात तो दूर है। अच्छे-अच्छे मंत्र वेत्ता और साधक भी उनके अर्थ से अपरिचित होते हैं किंतु यह मंत्र इतना सरल है कि सामान्य मनुष्य भी सरलता से इसका अर्थ ग्रहण कर लेता है। "ऊंकार मयी सिद्ध परमात्मा के समान निज सिद्ध स्वभाव को (स्वानुभूति पूर्ण) वंदन नमस्कार है।"इस अर्थ को ग्रहण करने में कोई कठिनाई नहीं है। इस मंत्र की सरलता देखकर कोई यह कहे कि यह तो मंत्र ही नहीं है, कुछ शब्द और वाक्यों का समूह मात्र है, किंतु ऐसी आशंका उचित नहीं है क्योंकि जिस मंत्र का जैसा कार्य होता है उसकी शब्द रचना भी उसी के अनुरूप होती है। यह मंत्र सिद्धि दाता है अत: उसी के अनुरूप उसकी शब्द रचना भी है। पणतीस सोल छप्पण, चदुदुगमेगं च जवह झाएह। परमेट्टि वाचयाणं, अण्णं च गुरुवएसेण ॥ पैंतीस अक्षर का मंत्र, सोलह अक्षर का मंत्र, छह, पांच, चार, दो और एक अक्षर के जो परमेष्ठी वाचक मंत्र हैं उनका ध्यान करना चाहिए। गुरु के उपदेश और आज्ञा से अन्य मंत्रों का भी ध्यान करना चाहिए। पैंतीस अक्षर का मंत्र - णमोकार मंत्र णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाणं णमो आइरियाणं णमो उवमायाण णमो लोए सब्ब साहूर्ण सोलह अक्षर का मंत्र- अरहंत सिद्ध आइरिया उवज्झाया साहू। अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधुभ्यो नमः। छह अक्षर का मंत्र- ॐ नम: सिद्धेभ्यः, अरहंत सिद्ध. ॐ हीं अहं नमः। पांच अक्षर का मंत्र - ॐ नमः सिद्धम् असि आउ सा चार अक्षर का मंत्र - अरहंत, अर्हत्सिद्ध दो अक्षर का मंत्र - सिद्ध, अर्ह एक अक्षर का मंत्र - ॐ, ओं, अ इन मंत्रों के अलावा अन्य मंत्रों का भी जप किया जाता है। अशुभ भाव और पाप से बचने के लिए भावों की शुभता एवं धर्म प्राप्ति का पथ प्रशस्त करने में मंत्र जप श्रेष्ठ साधन है। जैन धर्म में मंत्रों की बहुलता को देखकर यह सिद्ध होता है कि जैनाचार्य मंत्र विद्या के ज्ञाता रहे। जिस काल में भारत में मंत्रवाद की प्रधानता थी उस काल के प्रभाव से जैन भी अछूते नहीं रहे हैं और उन्होंने भी इस ओर ध्यान देकर मंत्र साहित्य को विकसित किया। इसका कारण यह संभव है कि मानव समाज में चमत्कार को नमस्कार करने की सहज प्रवृत्ति देखी जाती है, उसे थोड़ा सा भी चमत्कार दिखाकर एक इन्द्रजालिया भी मोहित कर लेता है। फिर मंत्र वादियों का
SR No.009720
Book TitleOm Namo Siddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasant Bramhachari
PublisherBramhanand Ashram
Publication Year
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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