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________________ ९१ बाढ़े धर्म पाप क्षय जाय, ऐसे चौबीस तीर्थंकर जिन्होंने आठ कर्म, आठ मद, अठारह दोषों को नष्ट कर निर्वाण पद प्राप्त किया ऐसे जिनेन्द्र देव तिनको बारम्बार नमस्कार हो, ऐसे बीस तीर्थंकर विदेह क्षेत्र में सदा सर्वदा विराजमान तिनको नमस्कार कीजे तो पुण्य की प्राप्ति होय। धर्म आराध आराध्य जीव निर्वाण पद को प्राप्त होय हैं। जिनके खोटे भाव - क्रोध, मान, माया, लोभ रूप चार कषाय, अष्ट मद, शंकादि आठ दोष, छह अनायतन, तीन मूढ़ता, सप्त व्यसन इत्यादि प्रपंच रूप मिथ्यात्व भाव विलीयमान हुए उन्हीं को जिन संज्ञा प्राप्त होती भई। 'एक जिन स्वरूप 'एक जिन को स्वरूप सोई चौबीस जिन को, सोई बहत्तर जिन को, सोई १४९ चौबीसी को होत भयो। जो स्वरूप श्री आदिनाथ देव जी को, सोई श्री महावीर देव जी को होत भयो। भेद विज्ञान प्रत्यक्ष-प्रत्यक्ष कर दर्शायो। केवल आयु, काय अरु समवशरण लघु दीरघ होंय। तप, तेज, गुण, लक्षण, बल, वीर्य सबके एक से ही होंय हैं। "जिन श्रेणी मार्ग कलन वीर्य " जिन श्रेणी सो मार्ग नाहीं, कलन कहिये ध्यान सो बल नाहीं, देव सी पदवी नाहीं, दाता सो स्वरूप नाहीं, जिनने कहा दान दियो ये ज्ञान दानं कुरूते मुनीनां,सदैव लोके सौख्यं प्रभोक्ता । राज्यं च सक्यं बल ज्ञान भूतै, लब्ध्वा स्वयं मुक्ति पदं ब्रजन्ति ॥ पय बारह (पंच परमेष्ठी, तीन रत्नत्रय, चार अनुयोग) उपयोग बारह (आठ ज्ञान, चार दर्शन) या प्रकार ज्ञान को ग्रहण कर मारीचिकुमार का जीव शुभ समय पाय स्थान कुण्डलपुर नगरी में श्री सिद्धार्थ राजा तथा माता श्री त्रिशला देवी के यहाँ अवतरित होता भया । महावीर भगवान का अवतार जान इन्द्रादिक देव जन्म कल्याणक महोत्सव के निमित्त भक्ति भाव सहित भगवान को गोद में लेय, पांडुक शिला पर ले जायकर, प्रभु का जन्म कल्याणक किया। तत्पश्चात् इन्द्र भगवान को माता की गोद में सौंप, स्व स्थान को प्रस्थान करता भया । श्री वीरदेव जी की ७२ वर्ष की आयु रही, जिसमें १२ वर्ष बालक्रीड़ा में और १८ वर्ष राज्य शासन में व्यतीत कर अपने समस्त राजपाट का परित्याग कर जिन दीक्षा धारण करके १२ वर्ष महान तपश्चरण कर ४२ वर्ष की अवस्था में केवलज्ञान प्राप्त किया। ॥ जयन् जय बोलिये जय नमोऽस्तु ॥ । भगवान महावीर स्वामी की-जय ॥ तब अनेकानेक देव देवियों सहित इन्द्र आयकर समवशरण की रचना करते भये । भगवान की वाणी के प्रकाशनार्थ श्री गौतम स्रोतम आदि ग्यारह गणधर आते भये। तब भगवान की दिव्य ध्वनि प्रकट होती भई। जय हो, जय हो....... ॥ भगवान महावीर स्वामी की-जय ॥ ॥ भगवान के समवशरण की-जय ।।
SR No.009719
Book TitleMandir Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasant Bramhachari
PublisherAkhil Bharatiya Taran Taran Jain Samaj
Publication Year
Total Pages147
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size1 MB
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