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________________ २. आगौनी (नमस्कार ) जय जय परमानन्द परम ज्योति, जय जय चिदानंद जिन आत्मानं । जय जय आत्मानं परमात्मानं, जय जय सोऽहं रूप समय शुद्धं ॥ जय समय शुद्धं जय नमस्कृतं जय नमस्कृतं जय महावीरं । विन्दस्थाने नमस्कृतं ॥ ३. समवशरण फूलना मैं तो आयो आयो आयो हो, अपने देव गुरु वन्दवे ॥ टेक ॥ आकाश लोक से इन्द्र जो आये, ऐरावत सज लाये हो..... अपने..... पाताल लोक से फणीन्द्र जो आये, फण पर नृत्य कराये हो.....अपने...... दशों दिशा से दिक्पाल जो आये, आनन्द उमंग बढ़ाये हो..... अपने...... मध्य लोक से चक्रवर्ती आये, चँवर सिंहासन लाये हो..... अपने..... राजगृही से राजा श्रेणिक आये, जय जय शब्द कराये हो..... अपने..... ४. समवशरण महिमा अहो जहाँ समव, अहो जहाँ समवशरण जिनवर जू की महिमा | पार न पावे कोय ॥ टेक ॥ अहो जहाँ चार ज्ञान के धरता गणधर, पार न पावे कोय............. अहो जहाँ पंच ज्ञान को मुकुट विराजे, केवल वन्दना होय............. अहो जहाँ क्षुधा तृषा जिनको नहिं व्यापे राग द्वेष नहिं होय. अहो जहाँ नन्त चतुष्टय जिन प्रति राजे, तीन रतनमय होय.......... अहो जहाँ सोऽहं शब्द अनक्षर वाणी सुनत श्रवण सुख होय.. अहो जहाँ प्रेम प्रीत से भज मन मेरे, आवागमन न होय............. ५. भजन (विलवारी चाल) .... १२० भलो भलो रे सहाई गुरु तार, लाल वेदी पर वाणी खिर रही ॥ सो तो काहे जड़त वेदी बनी, और काहे के सोलऊ खंभ....लाल......... सो तो रतन जड़ित वेदी बनी और मलयागिर सोलऊ खँभ....लाल........ सो तो काहे के कलशा धारे, और काहे के धुजा फहराय....लाल......... सो तो सुवरन के कलशा धारे, और धर्म धुजा फहराय.... लाल......... सो तो चन्दन भरो है तलाव री, जहाँ मुनिवर करत स्नान....लाल......... सो तो अष्ट कर्म मल धोय के, सो तो नियरो है पद निर्वाण ....लाल.......... सो तो वीर जिनेन्द्र हैं ऊपजे, राजा श्रेणिक दियो है प्रसाद....लाल.........
SR No.009719
Book TitleMandir Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasant Bramhachari
PublisherAkhil Bharatiya Taran Taran Jain Samaj
Publication Year
Total Pages147
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size1 MB
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