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________________ विष्णु बुद्ध महावीर प्रभु तुम, रत्नत्रय धारी ॥ वीतराग सर्वज्ञ हितंकर, जग के सुखकारी ॥ ॐ जय........ ज्ञानानंद स्वभावी हो तुम, हो तुम, निर्विकल्प ज्ञाता || तारण तरण जिनेश्वर, परमानंद दाता ॥ ॐ जय....... ४. आरती पंचपरमेष्ठी जी की इह विधि मंगल आरती कीजे, पंच परम पद भज सुख लीजै ॥ टेक ॥ पहली आरती श्री जिनराजा, भव दधि पार उतार जिहाजा... इह...... ॥ दूसरी आरती सिद्धनकेरी सुमिरन करत मिटै भव फेरी..... इह..... ।। तीसरी आरती सूर मुनिंदा, जनम मरन दुःख दूर करिंदा....इह..... ।। चौथी आरती श्री उवझाया, दर्शन देखत पाप पलाया.....इह..... ॥ पाँचवीं आरती साधु तिहारी, कुमति विनाशन शिव अधिकारी.. छट्टी ग्यारह प्रतिमाधारी, श्रावक वंदों आनन्दकारी सातवीं आरती श्री जिनवानी, 'द्यानत' सुरंग मुकति सुखदानी... इह...... ॥ इह विधि मंगल आरती कीजे, पंच परम पद भज सुख लीजै...इह...... ।। श्री मंगला आरती ......... II इह ॥ ५. ए ऐसी मंगल, ए ऐसो नाम || मंगल जो नित होय सदा नित होय ॥ आज देव जू को मंगल है | मोरे स्वामी ध्रुव पद ध्याइये आज देव जू को मंगल है । ए ध्रुव अबल अहो ध्रुव अबलबली निर्वान मोहे प्यारो लागे स्वामी हो, आज देव जू को मंगल है | ए जहाँ लेत अहो जहाँ लेत जिनेश्वर मोहे प्यारो लागे स्वामी हो । आज देव जू को मंगल है | ए ऐसे गुरु पर अहो ऐसे गुरु पर छत्र तनाव आज देव जू को मंगल है | ऐसे गुरु पर चैंवर दुराव आज देव जू को मंगल है | रही लौ लाय आज देव जू को मंगल है | || || ए ऐसो समय अहो ऐसो ए ऐसे गुरु पर ए पर अहो सब "समय" समय न बारम्बार || आज देव जू को मंगल है | ए स्वामी देओ अहो स्वामी देओ मुकति || परसाद आज देव जू को मंगल है | ११२
SR No.009719
Book TitleMandir Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasant Bramhachari
PublisherAkhil Bharatiya Taran Taran Jain Samaj
Publication Year
Total Pages147
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size1 MB
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