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________________ १२३ ] [मालारोहण जी गाथा क्रं. १०] [ १२४ ८. निर्जरा पदार्थ - भाव निर्जरा से-द्रव्य निर्जरा रूप-कर्मों का क्षय होना। ९. मोक्ष पदार्थ - भाव मोक्ष से द्रव्य मोक्ष रूप परिपूर्ण शुद्ध दशा का होना। (३) द्रव्य - द्रवित होने, एक दूसरे में मिलने, अपने स्वरूप से स्वतंत्र भिन्न रहने वाली अनादि निधन वस्तु को द्रव्य कहते हैं। द्रव्य छह होते हैंजीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश, काल इन छह द्रव्यों के समूह को विश्व कहते हैं। सत् द्रव्य लक्षणम् । उत्पाद व्यय ध्रौव्य युक्तं सत् । गुण पर्यय वत् द्रव्यम् । (तत्वार्थ सूत्र) १. जीव द्रव्य-देखने जानने वाला, चेतन लक्षण, ज्ञायक स्वभावी अरूपी निराकार, वेदक। २. पुद्गल द्रव्य - रूप, रस, गंध, वर्ण, स्पर्श वाला, अचेतन जड़ परमाणु, गलन पूरण स्वभाव अर्थात् मिलने बिछुड़ने वाला । ३. धर्म द्रव्य - एक अमर्तिक द्रव्य शक्ति है, जो जीव और पुद्गल को गमन करने में सहकारी होता है। यदि धर्म द्रव्य न होवे तो जीव और पुदगल गमन ही नहीं कर सकते क्योंकि लोकाकाश के आगे धर्म द्रव्य न होने के कारण सिद्ध परमात्मा लोकाकाश के अग्रभाग में तिष्ठे हैं। पुद्गल का गमन भी लोकाकाश के आगे नहीं है। ४. अधर्म द्रव्य - यह भी एक अमर्तिक द्रव्य शक्ति है जो जीव और पुद्गल को ठहरने में सहकारी होता है। ५. आकाश द्रव्य -यह भी एक अमूर्तिक द्रव्य है । जो पांचों द्रव्यों को अपने में अवकाश (स्थान) देता है। इसमें अनन्त जीव, अनन्तानंत पुद्गल परमाणु, एक धर्म, एक अधर्म, असंख्यात कालाणु समाये हुए हैं और यह अपने में शुद्ध इन सबसे अलिप्त न्यारा है। इसके दो भेद हैं-लोकाकाश और अलोकाकाश। ६. काल द्रव्य - परिणाम और वर्तना जिसका लक्षण है वह काल द्रव्य है अर्थात जिसके निमित्त से सूक्ष्म और स्थूल परिवर्तन होता रहता है वह काल द्रव्य है। इन छह द्रव्यों में धर्म, अधर्म, आकाश और काल यह चार द्रव्य सदा शुद्ध अपने स्वभाव में स्थित रहते हैं। जीव और पुद्गल, यह दो द्रव्य, स्वभाव, विभाव रूप परिणमन करते हैं, एक दूसरे में मिलकर अशुद्ध होते हैं। प्रश्न - जब जीव चेतन अरूपी है और पुद्गल अचेतन जड़ और लपी है फिर यह कैसे मिले हैं? समाधान - द्रव्य होने से दोनों मिले हैं क्योंकि द्रव्य का स्वभाव एक-दूसरे में मिलने का है। यह पूरे विश्व का परिणमन छहों द्रव्य के मिलने सहकार से ही चल रहा है, पर इनमें चार द्रव्य तो अपने में पूर्ण शुद्ध रहते हैं। मात्र जीव और पुद्गल द्रव्य की पर्याय में अशुद्धि आ जाती है, जिससे यह संसार परिभ्रमण चल रहा है। प्रश्न - छहों द्रव्य कैसे मिले हैं, इसका उदाहरण दीजिये? समाधान - यह हाथ की मुट्ठी है, इसमें चेतना शक्ति है यह जीव द्रव्य, यह मुट्ठी रूपी पुद्गल द्रव्य, यह मुटठी खोलना इसमें सहकारी धर्म द्रव्य, इसे बन्द स्थिर रखना यह अधर्म द्रव्य, इसमें परिवर्तन छोटा बड़ा होना यह काल द्रव्य और यह आकाश में स्थित है इस प्रकार पूरे विश्व का परिणमन चल रहा है। प्रश्न-जब काल द्रव्य के द्वारा सबका परिणमन चल रहा है फिर धर्म, अधर्म द्रव्य की क्या उपयोगिता है? समाधान - सब द्रव्यों की अपनी उपयोगिता और पूर्ण स्वतंत्रता है, यह मुट्ठी की हथेली और अंगुलियों का छोटी-बड़ी, जीर्ण शीर्ण होना यह काल द्रव्य का काम है पर इसका खुलना बन्द होना, घूमना स्थिर रहना यह धर्म,अधर्म, द्रव्य का ही काम है। (४) अस्तिकाय - बहु प्रदेशी द्रव्य को अस्तिकाय कहते हैं, यह पाँच
SR No.009718
Book TitleMalarohan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanand Swami
PublisherBramhanand Ashram
Publication Year1999
Total Pages133
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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