SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 72
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [मालारोहण जी नहीं हुई, इसे अपनी ओर मोड़ने के लिये विवेक, बल और पुरूषार्थ से अपनी ओर मोड़ना पड़ेगा, इसके लिये ज्ञान की शुद्धि करना पड़ती है, तभी सब रागादि भावों से भिन्न, निरावरण चैतन्य ज्योति स्वरूप प्रगट होता है, जिसके प्रकाश में विकल्प जाल, अज्ञान अंधकार ठहरता ही नहीं है। प्रश्न- ज्ञान की शुद्धि के लिये क्या करें ? इसके समाधान में दसवीं गाथा कहते हैं १२१ ] गाथा - १० सप्त तत्वं षट् दर्व जुक्तं, पदार्थ काया गुन चेतनेत्वं । विस्वं प्रकासं तत्वानि वेदं श्रुतं देवदेवं सुद्धात्म तत्वं ॥ शब्दार्थ - (जे) जो (सप्त तत्वं) सात तत्व (जीव, अजीव, आश्रव, बंध, संवर, निर्जरा, मोक्ष) (षट् दर्व) छह द्रव्य (जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश, काल) (जुक्तं) सहित है (पदार्थ) नौ पदार्थ (जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आश्रव, बंध, संवर, निर्जरा, मोक्ष) (काया) अस्तिकाय (गुन चेतनेत्वं) जो हमेशा चैतन्य गुण वाला है (विस्वं प्रकासं) विश्व को प्रकाशित करने वाला अर्थात् जिसके द्वारा विश्व जाना जा रहा है (तत्वानि वेदं) सब तत्वों को वेदन, जानने वाला (श्रुतं) शास्त्र आगम में कहा गया है (देवदेवं) देवों का देव परमात्मा (सुद्धात्म तत्वं) शुद्धात्म तत्व है। विशेषार्थ - जीवादि सात तत्व, नौ पदार्थ, छह द्रव्य और पांच अस्तिकाय, इन सत्ताईस तत्वों में शुद्ध चैतन्य गुण युक्त ज्ञान स्वरूपी चिद् विलासी समस्त विश्व को प्रकाशित करने वाला, सब तत्वों को जानने वाला शुद्धात्म तत्व है। शुद्ध ज्ञान का धारी चिदानन्द मयी शुद्धात्म तत्व ही शास्त्रों में देवों का देव अर्थात् अरिहन्त और सिद्ध स्वरूपी परमात्मा कहा गया है। ज्ञान की शुद्धि के लिए, इन सब बातों का निर्णय होना चाहिए, सत्ताईस तत्वों का परिपूर्ण ज्ञान होना चाहिए। अपने शुद्धात्म स्वरूप का सम्यग्ज्ञान गाथा क्रं. १०] होना चाहिए तभी अपने में दृढ़ता और स्थिरता होती है। आत्मा का निश्चय सो सम्यग्दर्शन, आत्मा का ज्ञान सो सम्यग्ज्ञान और आत्मा में निश्चल स्थिति सो सम्यग्चारित्र, ऐसा रत्नत्रय रूप मोक्षमार्ग है। सत्ताईस तत्वों में जीव तत्व, जीव पदार्थ, जीव द्रव्य, जीवास्तिकाय रूप एक जीव ही है। शेष २३ तत्व रूप पूरा संसार है। इनके भेद-प्रभेद करके वस्तुस्वरूप को जानना ही ज्ञान की शुद्धि है, तभी संशय - विभ्रम-विमोह रहित सम्यग्ज्ञान होता है। [ १२२ (१) तत्व - स्थायी स्वतंत्र सत्ता शुद्ध द्रव्य को तत्व कहते हैं अर्थात् जो निरन्तर गतिशील अपने में ही सक्रिय रहता है। तत्व ७ होते हैं (१) जीव तत्व (२) अजीव तत्व (३) आश्रव तत्व (४) बंध तत्व (५) संवर तत्व (६) निर्जरा तत्व (७) मोक्ष तत्व । (१) जीव तत्व - ज्ञान मात्र चेतन शक्ति (२) अजीव तत्व - अचेतन जड़ शक्ति (३) आश्रव तत्व आकर्षित होना, आना-मिलना ( ४ ) बंध तत्वबंधना, रूकना (५) संवर तत्व अलग होना, हटना (६) निर्जरा तत्व - छूटना, क्षय होना (७) मोक्षतत्व मुक्ति, पूर्ण शुद्ध दशा । (२) पदार्थ - मिली हुई वस्तु को पदार्थ कहते हैं जिसमें स्वभाव, विभावरूप, परिणमन शक्ति होती है तथा जो संसार में स्थित रहता है। पदार्थ नौ होते हैं-जीव, अजीव, पाप, पुण्य, आश्रव, बंध, संवर, निर्जरा, मोक्ष। १. जीव पदार्थ चेतन लक्षण देखने जानने वाला, शुद्ध-अशुद्ध (शुभ-अशुभ) भाव का कर्ता । २. अजीव पदार्थ - अचेतन जड़ पुद्गल परमाणु । ३. पाप पदार्थ जीव के अशुभ भावरूप, अशुभ कर्म होना । ४. पुण्य पदार्थ - जीव के शुभ भाव रूप, शुभ कर्म होना । ५. आश्रव पदार्थ - भावाश्रव द्रव्यासव रूप कर्मों का आना । ६. बंध पदार्थ - भाव बंध, द्रव्य बंधरूप, कर्मों का बंधना । ७. संवर पदार्थ - भाव संवर से द्रव्य संवर रूप कर्मों का आना, रूकना ।
SR No.009718
Book TitleMalarohan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanand Swami
PublisherBramhanand Ashram
Publication Year1999
Total Pages133
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy