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________________ २३३ ] [मालारोहण जी प्रश्नोत्तर] [ २३४ होता, निर्लिप्त रहता है। ज्ञानघारा और कर्मधारा दोनों परिणमती हैं। अभी अस्थिरता है, वह उसके पुरूषार्थ की कमजोरी से होती है। शरीरादि पर से भिन्नत्व भाषित होने से वह अपने चैतन्य ज्ञायक भाव उपयोग की ही संभाल करता है। सम्यग्दृष्टि को आत्मा के सिवाय बाहर कहीं अच्छा नहीं लगता, जगत की कोई वस्तु सुन्दर नहीं लगती। अनादि अभ्यास के कारण, अस्थिरता के कारण अन्दर स्वरूप में नहीं रहा जा सकता इसलिए उपयोग बाहर आता है। लेकिन - जब निज आतम अनुभव आवे, फिर और कछु न सुहावे । रस नीरस हो जाय ततच्क्षण, अक्ष विषय नहीं भावे ॥ सम्यग्दृष्टि को अभी स्वानुभूति की पूर्णता नहीं है परन्तु दृष्टि में परिपूर्ण ध्रुव आत्मा है। नि:शंक गुण प्रगट हो गया है। संसार से, कर्म बंधनों से छुटने, मुक्त होने का पक्का निर्णय हो गया है इसलिए इसी आनन्द उत्साह में रहता होता। इसी प्रकार मेरा परिणमन पर के आधीन नहीं है, संसारी दशा में पूर्व कर्मोदय के निमित्त को पाकर अपनी पर्याय धारा के अनुसार आने वाले परिणमन के अनुकूल ही मेरा परिणमन होगा, मेरी मात्र इच्छानुसार नहीं होगा। ऐसा जान कर दु:खी नहीं होता, यही उसके तत्व ज्ञान का फल है। प्रश्न ७ - सम्यग्दृष्टि और ज्ञानी में अन्तर है या दोनों एक है? समाधान - सम्यग्दृष्टि और ज्ञानी एक ही जीव होता है, पर सम्यग्दर्शन होने के पश्चात् सम्यग्ज्ञान की शुद्धि करना पड़ती है। संशय, विभ्रम, विमोह दूर होने पर ही वह वास्तविक ज्ञानी होता है । जो निशंक, निर्भय, अबन्ध होता है। प्रश्न८-द्रव्य और पर्याय क्या वस्त है? समाधान - द्रव्य और पर्याय एक वस्तु है क्योंकि दोनों में प्रतिभास भेद होने पर भी भेद नहीं है। जिनमें प्रतिभास भेद होने पर भी अभेद होता है वे एक होते हैं अत: द्रव्य और पर्याय भिन्न नहीं है । इस तरह वस्तु द्रव्य पर्यायात्मक है। इन दोनों में से यदि एक को भी न माना जाये, तो वस्तु नहीं हो सकती क्योंकि सत् का लक्षण है-अर्थ क्रिया किन्तु पर्याय निरपेक्ष अकेला द्रव्य अर्थ क्रिया नहीं कर सकता और न द्रव्य निरपेक्ष पर्याय ही कर सकती है किन्तु एक वस्तु होने पर भी उनमें परस्पर में स्वभाव, नाम, संख्या आदि की अपेक्षा भेद भी है। स्वभाव-द्रव्य अनादि अनन्त है, एक स्वभाव परिणाम वाला है, पर्याय सादि शान्त अनेक स्वभाव परिणाम वाली है। नाम- द्रव्य की संज्ञा द्रव्य है, पर्याय की संज्ञा पर्याय है। संख्या - द्रव्य की संख्या एक है. पर्याय की संख्या अनेक है। कार्य-द्रव्य का कार्य एकत्व का बोध कराना है,पर्याय का कार्य अनेकत्व का बोध कराना है। काल - द्रव्य त्रिकालवर्ती होता है, पर्याय वर्तमान काल वाली एक समय की होती है। लक्षण - द्रव्य का लक्षण सत् अविनाशी है, पर्याय क्षणवर्ती नाशवान है। प्रश्न६-ज्ञान अज्ञान दशा में जीव में क्या अन्तर पड़ता है? समाधान - अज्ञान दशा में स्वभाव का बोध उसे नहीं होता अत: पर पदार्थ के संचय में, उसके निर्माण में वह होता तो निमित्त मात्र है पर अपने को पर का कर्ता मानता है। यह मान्यता ही उसका भ्रम है और भ्रम के कारण ही वह दु:खी है। वह दु:खी इसलिए होता है कि अपनी गलत मान्यता, पर को अपने अनुकूल बनाना चाहता है परन्तु पर द्रव्य तो स्वयं अपनी परिणति के अनुरूप परिणमता है। इसकी इच्छानुसार परिणमन नहीं करता, तब यह अपनी इच्छानुकूल पर परिणमन के अभाव में स्वयं दु:खी होता है, इसी प्रकार पर में अपना कर्तृत्व देखकर, जब पर की निमित्तता में भी अपनी स्थिति अपनी इच्छानुसार नहीं पाता, तब उसका दोष पर को देता है और स्वयं दुःखी होता है। ज्ञानी की स्थिति इसके विपरीत है, वह जानता है कि पर द्रव्य अपने द्रव्य की योग्यतानुसार तथा अपनी पर्यायधारा के अनुसार आने वाले परिणमन के अनुसार ही परिणमेगा, मेरी इच्छानुसार नहीं परिणमेगा अत: दु:खी नहीं
SR No.009718
Book TitleMalarohan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanand Swami
PublisherBramhanand Ashram
Publication Year1999
Total Pages133
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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