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________________ ॐ वन्दे श्री गुरु तारणम् आध्यात्मिक जयमाल एवं आध्यात्मिक भजन * न्यानं दसन सम्म, सम भावना हवदिचारित्त। सम्यक् दर्शन ज्ञान सहित रागादि के अभाव रूपजो सम भावना होती है, उसको सम्यक् चारित्र कहते हैं। * पूजा पूज्य समाचरेत् ।। पूज्य के समान आचरण होना ही सच्ची पूजा है। *जह पज्जार्य विद्यु, अप्या समयं च मुक्त न्यानं च। जैसे ही जीव पर्याय की दृष्टि करता है, उसी क्षण स्व समय आत्म स्वरूप के ज्ञान से छूट जाता है। * देवं अलव लव, दर्सन मोहंध व देव च। पुद्गलादि के समस्त रूपों से अतीत, ज्ञान स्वभावी, अरूपी जिसका स्वरूप है वह सच्चा देव है, किन्तु दर्शन मोहांध जीव रूपी (मूर्तिक शरीर) को देव मानता है।। * चलि चलान हो मुक्ति श्री तुम्ह न्यान सहाए। हे भव्यात्मन् ! चलो-मुक्ति श्री तुम्हारे ज्ञान स्वभाव में ही है, उसी में आचरण करो। * जिनवयन सदहनं । जिनेन्द्र भगवान के वचनों पर श्रद्धान करो। * पण्डिय विवेय सुद्धं । पंडित अर्थात् ज्ञानी वह है जो विवेक से (आत्म-अनात्म बोध से) शुद्ध होता है। * ममात्मा ममलं सुद्धं । मेरा आत्मा त्रिकाल शुद्ध ममल स्वभावी है। * कमलं कलंक रहियं । कमल के समान ज्ञायक ज्ञान स्वभावी आत्मा सर्व कर्म कलंक अर्थात् कर्म मल से रहित है। * न्यान बलेन इष्ट संजोए, भय पिपिय कम्म विलीजै। ज्ञान के बल से अपने इष्ट (निज शुद्धात्मा) को संजोओ, इससे सभी भय क्षय हो जायेंगे और कर्म विला जायेंगे, क्षय हो जायेंगे। * जिन उत्तं सुध सारं,न्यानं अन्मोय विकल्पं विलयं । जिनेन्द्र परमात्मा के कहे हुए वचनों का शुद्ध सार यही है कि अपने ज्ञान स्वभाव में लीन हो जाओ, इसी से संपूर्ण विकल्प विला जायेंगे और मुक्ति की प्राप्ति होगी। आत्मनिष्ठ साधक, आध्यात्मिक संत पूज्य गुरुदेव श्री ज्ञानानंद जी महाराज
SR No.009717
Book TitleKamal Battisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanand Swami
PublisherBramhanand Ashram
Publication Year1999
Total Pages113
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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