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________________ श्री कमलबत्तीसी जी भजन-३२ गुरू तारण तरण आये तेरी शरण / हम डूब रहे मंझधार, नैया पार करो॥ 1. काल अनादि से डूब रहे हैं / चारों गति में घूम रहे हैं | भोगे हैं दु:ख अपार, नैया पार करो...गुरू... 2. अपने स्वरूप को जाना नहीं है / तन धन को पर माना नहीं है // करते हैं हा हा कार, नैया पार करो...गुरू... 3. हमको आतम ज्ञान करा दो / सच्चे सुख का मार्ग बता दो // मोही करता पुकार, नैया पार करो...गुरू... श्री कमलबत्तीसी जी भजन-३४ दे दी हमें मुक्ति ये बिना पूजा बिना पाठ / तारण तरण ओ संत तेरी अजब ही है बात / / वन्दे श्री गुरू तारणम्॥ जडवाद क्रियाकांड को मिथ्यात्व बताया / आतम की दिव्य ज्योति को तुमने लखाया // बन गये अनुयायी तेरे, सभी सात जात...तारण... भक्ति से नहीं मुक्ति है पढ़ने से नहीं ज्ञान / क्रिया से नहीं धर्म है ध्याने से नहीं ध्यान // निज की ही अनुभूति करो,छोड़ कर मिथ्यात्व...तारण... आतम ही है परमात्मा शुद्धात्मा ज्ञानी / तुमने कहा और साख दी जिनवर की वाणी // तोड़ी सभी कुरीतियां, तब मच गया उत्पात...तारण... बाह्य क्रिया काण्ड से नहीं मुक्ति मिलेगी / देखोगे जब स्वयं को तब गांठ खुलेगी // छोड़ो सभी दुराग्रह, तोड़ो यह जाति पांति...तारण... ब्रह्मा व विष्णु शिव हरि, कृष्ण और राम / ओंकार बुद्ध और जिन, शुद्धात्मा के नाम // भूले हो कहां मानव, क्यों करते आत्मघात...तारण... अपना ही करो ध्यान तब भगवान बनोगे / ध्याओगे शुद्धात्मा, तब कर्म हनोगे // मुक्ति का यही मार्ग, तारण पंथ है यह तात...तारण... 5. 1. 2. भजन-३३ धन के चक्कर में भुलाने सब लोग, धर्म हे कोई नहीं जाने // धर्म के नाम पर ढोंग कर रहे, माया के हैं दास / पूजा पाठ में लगे हैं निशदिन, नहीं आतम के पास // मन के चक्कर में लुभाने सब लोग.... मंदिर तीर्थ बनवा रहे हैं, तिलक यज्ञ हैं कर रहे। पर के नाम को घोंट रहे हैं, धन के पीछे मर रहे // तन के चक्कर में लाने सब लोग.... धन वैभव ही जोड़ रहे हैं, धर्म के नाम पर धंधा / पर को मारग बता रहे हैं, खुद हो रहे हैं अंधा // कन के चक्कर में सुलाने सब लोग..... जीव अजीव का भेदज्ञान कर, अपनी ओर तो देखो। ज्ञानानंद तब धर्म होयगा, पर को पर जब लेखो / वन में चल करके धरो तुम जोग ..... कर्म जन्य रागादि भावों से आत्मा की भिन्नता को जानकर, आत्मा के यथार्थ स्वरूप का श्रद्धान और ज्ञान तथा राग और द्वेष की निवृत्ति रूप साम्य भाव को धारण करना, यही सम्यक्चारित्र है। मोह और क्षोभ से रहित परिणाम ही साम्य भाव है, निश्चय से यही चारित्र धर्म है। * इति * 113
SR No.009717
Book TitleKamal Battisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanand Swami
PublisherBramhanand Ashram
Publication Year1999
Total Pages113
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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