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________________ श्री ममल पाहुइ जी-विषयवस्तु सुन्न ५७२ - कोड सुन्न ४८, सौ कोडि सुन्न ७२, उत्पन्न कोड सुन्न १०८, आराध कोड सुन्न ३४२, उत्पन्न १, इष्ट सुन्न १। अक्षर ४८- सुयं जाता उतपनु (८), जंतं उत्तं (४), जं साह सुतं सिधि धू(८), जाऊ ताऊ (४), जु करइ सु पावइ (८), जु जइसउ करइ सु तइसउ पावइ (१६)। पप १२ जिन अर्थ उक्त सब्द, ममल कमल लोन 4 वस। तत्तु लीन सम भावं, ममलं उदेस कम्म पिपिऊनं ॥ जिन पय, अर्थ पय, उक्त पय, शब्द पय, ममल पय (प्रथम), कमल पय, लीन पय (प्रथम), दर्स पय, तत्त्व पय, लीन पय (द्वितीय), ममल पय (द्वितीय), उदेस पय। १.जिनपय - पय तो जिन, जिन तो समय, समय तो सहकार, सहकार तो अवकास, अवकास तो अन्मोद, अन्मोद तो विपक, षिपक तो मुक्ति, मुक्ति तो सुष।। २.अर्थ पप-पय तो अर्थ, अर्थ तो तिअर्थ, तिअर्थ तो समर्थ, समर्थ तो सदर्थ, सदर्थ तो अवकास अर्थ, अवकास अर्थ तो अन्मोद अर्थ, अन्मोद अर्थ तो विपक अर्थ, विपक अर्थ तो मुक्ति अर्थ, मुक्ति अर्थ तो सुष अर्थ । ३.उक्त पप-पय तो उक्त, उक्त तो सुद्ध, सुद्ध तो मुक्त, मुक्त तो रमन, रमन तो समय, समय तो लीन, लीन तो अन्मोद, अन्मोद तो विपक, षिपक तो मुक्ति, मुक्ति तो सुष। ४.सब्द पव-पय तो सब्द, सब्द तो श्रुत, श्रुत तो विंद, विंद तो न्यान, न्यान तो विन्यान, विन्यान तो सहकार, सहकार तो अवकास, अवकास तो अन्मोद, अन्मोद तो विपक, षिपक तो मुक्ति, मुक्ति तो सुष। ५.ममल पय (प्रथम)-पय तो ममल, ममल तो समय, समय तो रमन, रमन तो लंकृत, लंकृत तोन्यान, न्यान तो विन्यान, विन्यान तो मइ, मइ तो मइमूरति, महमूरति तो अनंत, अनंत तो नाना प्रकार, नाना प्रकार तो अन्मोद, अन्मोद तो विपक, विपक तो मुक्ति, मुक्ति तो सुष। ६.कमल पच-पय तो कमल, कमल तो कारन, कारन तो कार्ज, कार्ज तो उक्त, उक्त तो परिनइ, परिनइ तो प्रमान, प्रमान तो समय, समय तो सहकार, सहकार तो श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी अवकास, अवकास तो अन्मोद,अन्मोद तो विपक,षिपक तो मुक्ति, मुक्ति तो सुष। ७.लीन पथ (प्रथम)-पय तो लीन, लीन तो अर्थ, अर्थ तो तिअर्थ, तिअर्थ तो समर्थ, समर्थ तो दिप्ति, दिप्ति तो समय, समय तो सहकार, सहकार तो अवयास, अवयास तो अन्मोद, अन्मोद तो विपक, षिपक तो मुक्ति, मुक्ति तो सुष । ८.दर्स पय- पय तो दर्स, दर्स तो लंकृत, लंकृत तो लोक, लोक तो न्यान, न्यान तो विन्यान, विन्यान तो ममल, ममल तो केवल, केवल तो अन्मोद, अन्मोद तो विपक, षिपक तो मुक्ति, मुक्ति तो सुष।। ९.तत्व पय-पय तो तत्त्व, तत्त्व तो न्यान, न्यान तो उत्पन्न, उत्पन्न तो विन्यान, विन्यान तो सहकार, सहकार तो विंद, विंद तो दिप्ति, दिप्ति तो अवकास, अवकास तो प्रमान (या परमप्पु), प्रमान तो अन्मोद, अन्मोद तो विपक, षिपक तो मुक्ति, मुक्ति तो सुष। १०.लोन पब (दितीय)-पय तो लीन, लीन तो उक्त, उक्त तो मुक्त, मुक्त तो अनंत, अनंत तो नृत, नृत तो सिद्ध, सिद्ध तो पत्त। ११. ममल पय - शुद्धि पय (द्वितीय) - पय तो ममल, ममल तो पत्र, पत्र तो कथन, कथन तो रमन, रमन तो शुद्ध, शुद्ध तो मित्र, मित्र तो दिस्टि, दिस्टि तो अन्मोद, अन्मोद तो विपक, षिपक तो मुक्ति, मुक्ति तो सुष। १२.उदेस पय-पय तो उदेस, उदेस तो परिनइ, परिनइ तो प्रमान, प्रमान तो न्यान, न्यान तो मुक्त, मुक्त तोरमन, रमन तो समय, समय तो सहकार, सहकार तो अवकास, अवकास तो अन्मोद, अन्मोद तो विपक, षिपक तो मुक्ति, मुक्ति तो सुष। बारह माह के अनुसार फूलनाके १२ रागकुंवार - अनबोलना, कार्तिक - बिलवारी, अगहन - चितनौटा, पूष - धमार, माघ - बसंत, फागुन - होली, चैत - गनगौर, बैसाख - दिनड़ी, ज्येष्ठ - ढोला, आषाढ़ - मल्हार, श्रावण - झूला, भादों - बंजारा। पालकी जी के समय-निरंजन निराकार ज्योति स्वरूप चिंतामणि तारण स्वामी दाता विधाता के उपदेश से तारण पंथ में बढ़े चलो-बढ़े चलो।
SR No.009713
Book TitleAdhyatma Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Jain Tirthkshetra Nisai
PublisherTaran Taran Jain Tirthkshetra Nisai
Publication Year
Total Pages469
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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