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________________ श्री ममल पाहुइ जी-विषयवस्तु अर्क धृति * वन्दे श्री गुरु तारणम् * श्री ममलपाहुड जी ग्रन्थ के प्रत्येक फूलना में विषय वस्तु दी गई है। एक विषय एक से अधिक फूलनाओं में भी आया है, यहां विषय वस्तु के भेद - प्रभेद स्वाध्यायी, आत्मार्थी, जिज्ञासु भव्यजीवों के प्रबोध हेतु दिये गये हैं। यह विषय वस्तु विक्रम संवत् १९४३ के ठिकानेसार की प्रति के आधार पर दी गई है। श्री गुरु महाराज की आत्म साधना के आध्यात्मिक अनुभूतिपूर्ण रहस्य इस विषय वस्तु में गर्भित हैं। विज्ञजन इस विषय वस्तु के संबंध में अवश्य ही चिंतन मनन करके फूलनाओं के यथार्थ अभिप्राय को समझते हुए आत्म ज्ञान की प्राप्ति रूप लक्ष्य को प्राप्त करेंगे इसी भावना से विषय वस्तु प्रस्तुत है। श्री ममालपाइजी बन्धकी विषय वस्तु के मेड-प्रोड तिअर्थ- उत्पन्न अर्थ - सम्यग्दर्शन, हितकार अर्थ - सम्यग्ज्ञान, सहकार अर्थ - सम्यक्चारित्र। नंद५- नंद, आनंद, चेयननंद, सहजानंद, परमानंद। ज्ञान ५- मति ज्ञान, श्रुत ज्ञान, अवधि ज्ञान, मन:पर्यय ज्ञान, केवल ज्ञान । दर्शन ४ - चक्षु दर्शन, अचक्षु दर्शन, अवधि दर्शन, केवल दर्शन । दान ४- आहार दान, ज्ञान दान, औषधि दान, अभय दान। पात्र ३- उत्तम पात्र - वीतरागी साधु, मध्यम पात्र - देशव्रती श्रावक, जघन्य पात्र - अविरत सम्यक्दृष्टि श्रावक। सक १७ - आसा, स्नेह, लाज, लोभ, भय, गारव, आलस, प्रपंच, विभ्रम, जनरंजन राग, कलरंजन दोष, मनरंजन गारव, दर्शन मोहंध, ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोह आवरण, अंतराय सहकार। विवान ५-१. हित हुँत औकास, अर्थ विंद, नन्द आनन्द, रंज रमन, जान जैन कलन उत्पन्न। २. विजय, वैजयन्त, जयंत, अपराजित, सर्वार्थसिद्धि। श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी ३. दिप्ति विवान, दिष्टि विवान, सब्द विवान, प्रियौ विवान, उत्पन्न साहि विवान। विवान ४ - दिस्टि विवान, अदिस्टि विवान, सब्द विवान, असब्द विवान । षट् सरोवर षट् कमल षट् देवियां षट् रमन पदम सरोवर उत्पन्नसिर कमल श्री महापदम सरोवर पदम कमल बिंद तिगिंछ सरोवर कंठ कमल आगंतु केसरी सरोवर हितकार कमल कीर्ति हिय पुंडरीक सरोवर गहिर कमल बुद्धि हुंतकार महापुंडरीक सरोवर गुहिज कमल लक्ष्मी रमन परिनाम भेद बारलक्षण परिनाम, कलस परिनाम, भौ हरित परिनाम, जुगल नेत्र परिनाम । लक्षण परिनाम - १०३२ सहकार अर्क ३६, तीन अर्थ-३६ ४ ३-१०८४५ अर्थ = ५४०+ ६ कमल - ५४६ । स्वर १४x ३३ व्यंजन = ४६२, (तीन ठिकाने-५४० +६+४६२) = १००८ + उत्पन्न चतुस्टय २४ % १०३२। कलस परिनाम-१००८ चतुष्टय ४ + परमेष्ठी ५%९, अंग८ + दिशा १०% १८, (१८४९% १६२) षट्कमल में इनकी स्थापना - सिर कमल - १६२, पदम कमल - १६२, कंठ कमल - १६२, हितकार कमल - १६२, गहिर कमल-१६२, गुहिज कमल -१६२ (१६२ x ६ = ९७२) ९७२ + ३६ अर्क = १००८। भी हरित परिनाम-९७२ अर्थति अर्थह नौ भय विलयं। उत्पन्न दिस्टि भय - दिस्टि, मन भय - आकर्न, झड़प भय - कमल । (२१)
SR No.009713
Book TitleAdhyatma Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Jain Tirthkshetra Nisai
PublisherTaran Taran Jain Tirthkshetra Nisai
Publication Year
Total Pages469
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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