SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५२ श्री उपदेश शुद्ध सार जी-विषयानुक्रम तो यह सब कर्म मल अपने आप विला जायेंगे। क्षायिक भाव की साधना करो, ध्यान समाधि लगाओ, अरिहंत सर्वज्ञ पद अपने आप प्रगट होगा। * गाथा ५४३ से ५५४ तक - आत्म स्वभाव की सर्वोच्च श्रेष्ठता,परम तत्त्व परमेष्ठी पद को प्रगट करने का उपाय। * गाथा ५५५ से ५६३ तक- बारह प्रकार का तप। छह बाह्य और छह आभ्यंतर तप करने से परमात्म पद की प्राप्ति। * गाथा ५६४ से ५८४ तक - ग्रंथराज की चूलिका स्वरूप उपदेश शुद्ध सार का सार। * गाथा ५८५ से ५८९ तक - उपदेश शुद्ध सार की महिमा और ग्रंथ लिखने का प्रयोजन। जिन उत्तं जिन वयनं, जिन सहकारेन उवएसनं तंपि। बं जिन तारन रइयं, कम्म षय मुक्ति कारनं सुद्धं ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी - फूलना सूची क्र. फूलना पृष्ठ संख्या ०१. देव दिप्ति गाथा १५१ ०२. मुक्ति श्री फूलना ०३. गुरू दिप्ति गाथा ०४. ध्यावहु फूलना धर्म दिप्ति गाथा ०६. तत्तुसार फूलना ०७. विनती फूलना ०८. पात्र गर्भ गाथा गर्भ चौबीसी फूलना १०. पात्र तीन दान चार रासौ गाथा ११. चेतक हियरा फूलना १२. दान पात्र विसेष फूलना १३. अन्यानी अन्यान मऊ फूलना १४. उत्पन्न छंद गाथा दर्सन चौविहि गाथा १६. कमल छंद गाथा १७. गिरा छंद गाथा १८. विंदरऊ फूलना १९. चषु दर्शन गाथा वैराग्य फूलना २१. जकड़ी फूलना २२. कमल सुभाव गाथा
SR No.009713
Book TitleAdhyatma Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Jain Tirthkshetra Nisai
PublisherTaran Taran Jain Tirthkshetra Nisai
Publication Year
Total Pages469
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy