SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 52
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ५६ ) प्रकार नैयायिक जगत् को परमाणुओं से उत्पन्न मानता है क्योंकि परमाणुओं के परस्पर मिलने से द्वयणुक उत्पन्न होता है और द्वथणुक से सृष्टि की उत्पत्ति होती है। पर साङ्ख्य और प्रत्यभिज्ञादर्शन दोनों में कारण में कार्य सत् रूप में विद्यमान रहता है क्योंकि सांख्य तो सत्कार्यवाद ही स्वीकार करता है और प्रत्यभिज्ञादर्शन में तो स्पन्द शक्ति का स्वरूप ही हैं, परन्तु न्याय असत् से सत् की उत्पत्ति मानता है जब कि प्रत्यभिज्ञादर्शन में स्पन्द भी सत्, शक्ति भी सत् और परमशिव भी सत् है। . स्पन्द और बौद्ध-असत्कार्यवाद बौद्ध दर्शन भी ठीक उसी प्रकार शून्य की सत्ता स्वीकार करता है जैसे प्रत्यभिज्ञादर्शन 'शून्यप्रमाता' की। शून्यप्रमाता का लक्षण 'ईश्वर-प्रत्यभिज्ञाकारिका' में इस प्रकार दिया गया है: "शून्ये बुद्धयाद्यभावात्मन्यहन्ताकर्तृतापदे । .. अस्फुटा रूपसंस्कारमात्रिणि ज्ञेयशून्यता ॥" ___ जगत् रूप कार्य का कारण प्रत्यभिज्ञादर्शन भी स्वीकार करता है, स्पन्द का कारण परमशिव है। बौद्ध भी सभी कार्यों का कारण शून्य को स्वीकार करता है। . बोद्ध भी शून्य को अभावरूप मानता है, प्रत्यभिज्ञादर्शन भी शून्य को अभावरूप मानता है, पर इनका अभाव बौद्धों के अभाव से सर्वथा भिन्न है। ये अभाव के. समस्त भावों के लयस्थान के रूप में स्वीकार करते है, जैसा स्पन्दकारिका में कहा गया है। "अशुन्यः शून्य इत्युक्तः शून्यश्चाभाव उच्यते । अभावः स तु विज्ञेयो यत्र भावाः क्षयं गताः॥" साथ ही बौद्धदर्शन सभी को 'सर्व क्षणिक क्षणिकम्' कह कर क्षणिक मानता है जब कि प्रत्यभिज्ञादर्शन परमशिव की सत्ता क्षणिक न स्वीकार कर नित्य मानता है। ___ साथ ही बौद्धदर्शन 'सर्वमनात्ममनात्मम्' कह कर आत्मा के अस्तित्व को अस्वीकार करता है जब कि प्रत्यभिज्ञादर्शन परमशिव को श्रात्मरूप ही मानता है-जैसा शिवदृष्टि में कहा गया है "आत्मैव सर्वभावेसु स्फुरनिवृतचिद्विभुः । .. अनिरुद्धच्छाप्रसरः प्रसरविक्रयः शिवः ॥"
SR No.009709
Book TitleVakrokti Jivitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadhyshyam Mishr
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy