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________________ ( ५८ ) पारमार्थिक दृष्टि में जगत् को ब्रह्म से पृथक् सत्ता न वेदान्त ही स्वीकार करता है और न परमशिव से पृथक् जगत् की सत्ता प्रत्यभिज्ञादर्शन ही । लेकिन प्रत्यभिज्ञादर्शन के अनुसार स्पन्द सत् है जब कि वेदान्त का विवर्त असत् । वेदान्त के अनुसार ब्रह्म सत् है और उसका विवर्तरूप जगत् मिथ्या'ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या' पर प्रत्यभिज्ञादर्शन के अनुसार परमशिव भी सत्, शक्ति भी सत् और उसका स्पन्दरूप जगत् भी सत् है । जैसा कि 'प्रत्यभिज्ञाहृदय' में कहा गया है - "पराशक्तिरूपा चितिरेव भगवती शक्तिः शिवभट्टारका - भिन्ना तत्तदनन्त जगदात्मना स्फुरति" । यहो दोनों का भेद है । स्पन्द और परिणामवाद जिस प्रकार प्रत्यभिज्ञादर्शन में जगत् शक्ति का स्पन्द है उसी प्रकार साङ्ख्य के अनुसार जगत् प्रकृति का परिणाम है । प्रकृति ही इस जगत् का कारण है । वह त्रिगुणात्मक है क्योंकि सामय सत्कार्यवाद को स्वीकार करता है । अतः क्योंकि जगत् त्रिगुणात्मक प्रतीत होता है अतः इसको कारणभूत प्रकृति भी त्रिगुणात्मक है । जिस प्रकार शक्ति का स्पन्दरूप जगत् शक्ति से पृथक् नहीं उसी प्रकार प्रकृति का परिणाम रूप जगत् प्रकृति से पृथक् नहीं; क्योंकि कारण ही तो परिणामरूप में परिवर्तित हो जाता है । शक्ति भी सत् है, इसका स्पन्द भी सत् है, उसी प्रकार प्रकृति भी सत् है उसका परिणाम भी सत् 출 1 परन्तु सांख्यकी प्रकृति जड़ है । वह परिवर्तनशील है, और उसमें यह परिवर्तन उससे भिन्न निरपेक्ष, चेतन एवं नित्य पुरुष के दर्शन से प्रारम्भ होता है । परिणामतः इसमें द्वैत की सत्ता स्वीकृत है, जब कि प्रत्यभिज्ञादर्शन में शक्ति जड नहीं । उसमें परिवर्तन भी नहीं होता । परिवर्तन का हमें केवल आभास होता है । तथा शक्ति परमशिव से भिन्न नहीं । अतः इसमें अद्वैत को सत्ता स्वीकृत हैं । इसके अतिरिक्त सांख्य पुरुष की अनेकता स्वीकार करता हैं जब कि प्रत्यभिज्ञादर्शन परमशिव को एकता । स्पन्द और नैयायिक उत्पत्ति सिद्धान्त जिस प्रकार वेदान्त जगत् को ब्रह्म का विवर्तरूप, सांख्य प्रकृति का परिणामरूप एवं प्रत्यभिशादर्शन शक्ति का स्पन्दरूप स्वीकार करता है उसी
SR No.009709
Book TitleVakrokti Jivitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadhyshyam Mishr
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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