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________________ ( ५६ ) इस प्रकार का जो परामर्श रूप आन्तरिक ज्ञान है—एकता का ज्ञान है-वह 'सामान्यस्पन्द' है यह उपादेय है। इससे हमें परमशिव की सत्ता का ज्ञान होता है । यह सद्रूप है । यही परमेश्वर की मुख्य शक्ति है। 'विशेषस्पन्द' का स्वरूप है-'विशेषस्पन्दाः अनात्मभूतेषु, देहादिषु, आत्माभिमानमुद्भावयन्तः परस्परभिन्नमायीयप्रमातृविषयाः सुखितोऽहं दुःखितोऽहमित्यादयो गुणमयाः प्रत्यवप्रवाहाः संसारहेतवः"-वही। अर्थात् 'विशेषस्पन्द' अनात्मभूत देहादि में अपने अभिमान की उद्भावना करते हुए एक दूसरे से भिन्न मायाजन्य प्रमाताओं के विषयभूत, मैं सुखी हूँ, मैं दुःखी हूँ, इत्यादि सत्त्व, रजस् एवं तमोरूप गुणों से युक्त ज्ञान के प्रवाह रूप संसार के कारण हैं। परिणामतः अतः यह स्पष्ट हुआ कि यह मायिक जगत् 'स्पन्द' के विशेषरूप में उपचरित है। यद्यपि परमार्थतः 'स्पन्द' का कोई सामान्य या विशेष रूप नहीं है । इस प्रकार संक्षेप में स्पन्द की निम्न विशेषतायें सिद्ध हुई: (१) 'स्पन्द' शक्ति का स्वभाव आत्मीय भाव है। (२) 'स्पन्द' शक्ति का धर्म है। ( ३ ) 'स्पन्द' शक्ति का व्यापार है। ( ४ ) 'स्पन्द' शक्ति का विलसित है। (५) 'स्पन्द' शक्ति का स्वरूप अपना ही रूप है । (६) 'स्पन्द' शक्ति से अभिन्न है । (७) यह दृश्यमान ( अनुभूयमान ) जगत् रूप वैचित्र्य शक्ति का स्पन्द (८) 'स्पन्द' शक्ति वा स्फुरितत्व है। हमारे 'साहित्यदर्शन' में 'अर्थ' परमशिवरूप में तथा 'वाणी' शिवारूप में अर्थात् शक्तिरूप में प्रतिष्ठित है-'अर्थः शम्भुः शिवा वाणी' । वस्तुतः वाणी अर्थ से अभिन्न है क्योंकि वाणी तो अर्थरूप ही है। वाणी की प्रतिष्ठा ‘परावाक्' के रूप में की गई है । उसका स्वरूप तन्त्रालोक में इस प्रकार कहा गया है: 'चितिः प्रत्यवमर्शात्मा परा वाक् स्वरसोदिता' अर्थात् परावाक् ( उत्कृष्टा वाणी ) चित् शक्ति है। कैसी चित् ? प्रत्यवमर्शात्मा अर्थात् चैतन्यत्त्वरूप ही है क्योंकि प्रत्यवमर्श चैतन्य का ही होता है। और कैसी चित् ? स्वरसोदिता अर्थात् स्वारस्य, अपनी ही इच्छा (स्वातन्त्र्य ) से स्फुरित। श्राशय यह है कि उसमें स्पन्दन स्फुरण अपने आप ही होता है। उसका कोई कारण नहीं । यह वाक् उत्कृष्ट अर्थ के ही परामर्शरूप होने के कारण उससे अभिन्न है । इसी की व्याख्या तन्त्रालोक में श्री अभिनवगुप्तपादाचार्य ने इस प्रकार किया है:
SR No.009709
Book TitleVakrokti Jivitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadhyshyam Mishr
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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