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________________ ( ४६ ) है । जैसे 'तापसवत्सराज' में द्वितीय, चतुर्थ, पञ्चम और षष्ठ अङ्कों में नये-नये ढङ्ग से कवि ने करुणरस को समुद्दीप्त कराया है । ५. जहाँ कवि किसी काव्य के सौन्दर्य को प्रस्तुत करने के लिए उसके कथावैचित्र्य की सृष्टि करने वाले जलक्रीडा आदि प्रकरणों को प्रस्तुत करता है वहाँ पांचवीं प्रकरणवक्रता होती है। जैसे रघुवंश २१ वें सर्ग में कुश की जलक्रीडा | ६. छठी प्रकरणवत्रता वहाँ होती हैं जहाँ कवि किसी प्रकरणविशेष के काव्य के द्वारा श्रङ्गी रस की निष्पत्ति इस ढङ्ग से कराता है कि वैसी निष्पत्ति कराने में उसके पहले के और वाद के प्रकरण असमर्थ सिद्ध होते हैं । जैसे कि 'विक्रमोर्वशीय' का 'उन्मत्ताङ्क' जहाँ अङ्गी रस विप्रलम्भशृङ्गार है । I ७. जहाँ कवि प्रधान वस्तु की सिद्धि करने के लिए उसी प्रकार की एक नये प्रकरण के वैचित्र्य को प्रस्तुत करता है वहाँ सातवीं प्रकरणवकता होती है । जैसे 'मुद्राराक्षस' के छठे अङ्क में राक्षस और पुरुष की वार्ता का प्रकरण । ८. जहाँ कविजन किसी नाटक के मध्य में एक दूसरे नाटक को सामाजिकों को श्रहादित करने के लिए प्रस्तुत करते हैं, वहाँ आठवीं प्रकरणवकता होती है । जैसे बालरामायण का चतुर्थ अङ्क या उत्तरचरित का सातवां अड्ड । ९. नवे प्रकार की प्रकरणवक्रता वुन्तक ने उन सभी प्रबन्धों में स्वीकार किया है जिनके प्रत्येक प्रकरण संधि-संविधान आदि की दृष्टि से एक सुसूत्र में बँधे रहते हैं और उनके पौर्वापर्य में किसी प्रकार की असंगति नहीं होती । उदाहरणार्थ उन्होंने पुष्पदूषितकप्रकरण' को उद्धृत किया है। प्रबन्धवक्रता कुन्तक ने प्रबन्धवक्रता के भी अनेक भेद प्रतिपादित किए हैं । प्रबन्ध से तात्पर्य सम्पूर्ण नाटक, महाकाव्यादिकों से है । १. जिस इतिहास के आधार पर कवि अपने प्रबन्ध की कथावस्तु को प्रस्तुत करता है, उसी इतिहास में जिस रस सम्पत्ति का निर्वास किया गया है उसकी उपेक्षा करके जहाँ कवि सहृदयाहाद की सृष्टि करने के लिए नवीन रस को प्रस्तुत करता है, वह प्रबन्ध की पहली वक्त्ता होती है । जैसे महाभारत पर आधारित वेणीसंहार और रामायण पर आधारित उत्तरामचरित तो कुन्तक के अनुसार रामायण और महाभारत दोनों का भङ्गी रस शान्त हैंमहाभारतयोश्च शान्तानित्वं पूर्व सूरिभिरेव निरूपितम्" । जब कि वेणीसंहार का अङ्गरस वीर, और उत्तरचरित का करुणविप्रलम्भ है । रामायण
SR No.009709
Book TitleVakrokti Jivitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadhyshyam Mishr
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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