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________________ तृतीयोन्मेषः गुणप्राधान्यं भावाभिव्यक्तिपूर्वमेवंविधविषये विभूष्यते । भूषणविवेकव्यक्तिरुज्जृम्भते, यथा— ३१९ क्षिप्तो हस्तावलग्नः प्रसभमभिहतोऽप्याददानोंऽशुकान्तं गृह्णन् केशेश्वपास्तश्चरणनिपतितो नेक्षितः संभ्रमेण । आलिङ्गन् योऽवधूतस्त्रिपुरयुवतिभिः साश्रुनेत्रोत्पलाभिः कामीवार्द्रापराधः स दहतु दुरितं शाम्भवो वः शराभिः ||४३|| जहाँ दूसरा वाक्यार्थ मुख्य होने के कारण अलङ्कार्यरूप में प्रतिपादित किया जाता है उसमें उसके अङ्गरूप में प्रयुक्त होने के कारण श्रृंगारादि ( रस ) अलंकार हो जाते हैं। क्योंकि गोणता एवं प्रधानता ये दोनों इस तरह के विषय में भावों की अभिव्यक्ति के हो जाने पर सुशोभित होते हैं और अलंकारता के विवेक का प्रकाशन जाहिर होता है । जैसे (त्रिपुरदाह के समय उत्पन्न ) आंसुओं से युक्त कमल के समान नेत्रों वाली त्रिपुर की युवतियों द्वारा तत्काल अपराध करनेवाले कामी ( नायक ) की तरह हाथ पकड़ने पर झटक दिया गया, बलपूर्वक ताडित किये जाने पर भी आंचल को पकड़ता हुआ, बालों को पकड़ते हुए हटाया गया, हड़बड़ी के कारण पैरों पर पड़ा हुआ भी न देखा गया, तथा आलिङ्गन करते हुए दुत्कारा गया भगवान् शंकर के बाणों का अग्नि आप लोगों के पापों को भस्म करे ॥ ४३ ॥ ( यहाँ पर आचार्य आनन्दवर्धन ने रसवदलङ्कार स्वीकार किया है । रसवदलङ्कार उन्होंने दो प्रकार का माना है। एक शुद्ध तथा दूसरा संकीर्ण । प्रस्तुत उदाहरण को उन्होंने संकीर्ण रसवदलंकार के रूप में उद्धृत किया है । इसके विषय में उनका कहना है कि ' इत्यत्र त्रिपुररिपुप्रभावातिशयस्य वाक्यार्थत्वे ईर्ष्याविप्रलम्भस्य श्लेषसहितस्याङ्गभावः ।" अर्थात् इस श्लोक में भगवान् शंकर का प्रभावातिशय वाक्यार्थ है । उसके अङ्ग रूप में ईर्ष्याविप्रलम्भ उपनिबद्ध है । अत: वह रसवदलंकार हुआ। साथ ही चूंकि श्लेष भी अङ्ग रूप में आया है अतः ईर्ष्याविप्रलम्भ के श्लेष से संकीर्ण होने के कारण यह संकीर्ण रसवदलंकार का उदाहरण है ! ) न न च शब्दवाच्यत्वं नाम समानं कामिशराग्नितेजसोः संभवतीति तावतैव तयोस्तथाविधविरुद्धधर्माध्यासादिविरुद्धस्वभावयोरैक्यं कथंचिदपि व्यवस्थापयितुं पार्यते, परमेश्वरप्रयत्नेऽपि स्वभावस्या -
SR No.009709
Book TitleVakrokti Jivitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadhyshyam Mishr
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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