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________________ ( ३५ ) · ( २ ) कवि की शक्ति एवं व्युत्पत्ति के परिपाक से प्रौढ कुशलता से सुशोभित होने वाली वस्तु की सृष्टि दूसरो प्रकार की वस्तुवक्रता को प्रस्तुत करती है जिसका विषय कोई अभूतपूर्व एवं अलौकिक वस्तु का उत्कर्ष होता है । श्राशय यह कि कविजन किसी सत्ताहीन पदार्थ की सृष्टि तो करते नहीं, बल्कि अपनी सहज एवं आहार्य कुशलता से केवल सत्तारूप से ही स्फुरित होने वाले पदार्थों के किसी ऐसे उत्कर्ष को प्रस्तुत कर देते हैं जिससे कि वह सहृदयहृदयावर्जक हो उठता है । इस प्रकार सहज आहार्य भेद से वर्णनीय वस्तु की दो प्रकार की वक्रतायें होती हैं । वस्तु को सहज वक्रता उसके स्वाभाविक सौन्र्दय, एवं रसादि को परिपुष्ट करती है जब कि आहार्यवस्तुवकता अलङ्कारवैचित्र्य को प्रस्तुत करती है । वर्णनीयवस्तु का विषयविभाग कुन्तक ने वस्तुवकता का विवेचन करने के बाद तृतीय उन्मेष की पाँचवीं कारिका से दसवीं कारिका तक, छः कारिकाओं में, वर्णनीय वस्तु के विषयविभाग एवं उसके स्वरूप को प्रस्तुत किया है । उनके अनुसार वर्णनीय पदार्थों का, अभिनव परिपोष के कारण रमणीय स्वभाव के अनुरूप होने के कारण मनोहारी स्वरूप दो प्रकार का होता है: dodan १. चेतनों अर्थात् प्राणियों का स्वरूप और २. श्रचेतनों अर्थात् जड़ों का स्वरूप । इनमें चेतन पदार्थों का स्वरूप प्रधाजनता एवं गौणता के आधार पर फिर दो प्रकार का हो जाता है: ---- १. सुर, असुर, सिद्ध, विद्याधर आदि प्रधान चेतनों का स्वरूप तथा (२) सिंहादि प्रप्रधान चेतनों का स्वरूप । ( १ ) इनमें से प्रधानभूत चेतनों अर्थात् सुरादिकों का वही स्वरूप कवियों वर्णन का विषय बनता है जो कि रति भादि स्थायीभावों को भलीभांति परिपुष्ट करने के कारण रमणीय होता है । ( २ ) तथा गौणभूत चेतनों अर्थात् पशु पक्षि एवं मृगादिकों का वही स्वरूप कवियों का वर्णनीय होता है जो कि अपनी जाति के अनुरूप स्वाभावानुसार व्यापार से युक्त होने के कारण सहृदयहृदयाह्लादक होता है। ( ३ ) साथ ही गौणभूत चेतनों एवं श्रचेतनरूप वृक्षादिकों का मारादि रसों को उदीप्त करने की सामर्थ्य द्वारा रमणीय स्वरूप ही ज्यादातर कवियों की वर्णन का विषय होता है । ( ४ ) इसके अतिरिक्त चेतन और अचेतत सभी पदार्थों का लोकव्यवहार
SR No.009709
Book TitleVakrokti Jivitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadhyshyam Mishr
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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