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________________ (३४) हो । अतः इन दोनों का अलग-अलग विवेचन कर अब सम्पूर्ण पद की वक्रता के रूप में उपसर्गों एवं निपातों की वक्रता को प्रस्तुत करते हैं। जहाँ उपसर्ग तथा निपात सम्पूर्ण वाक्य के एकमात्र प्राण रूप में झार श्रादि रसों को प्रकाशित करते हैं, वहाँ उपसर्ग एवं निपातजनित पदवकतायें हुआ करती हैं । यद्यपि इन उपसर्गादिक से लगे हुए अन्य प्रत्यय भी पदवकता को प्रस्तुत करते हैं- जैसे"येन श्यामं वपुरतितरां कान्तिमापत्स्यते ते" में अति के बाद भाया हुभा 'तराम्' प्रत्यय, किन्तु इसका पूर्वोक्त प्रत्ययवकता के अन्तर्गत ही अन्तर्भाव हो जाने से अलग विवेचन कुन्तक ने नहीं किया । इस तरह चार प्रकार के पदों की विषयमत वक्रताओं का उनके भेद-प्रभेद सहित विवेचन करके अन्त में उसके विषय में इस प्रकार कहते हैं: 'तदेवमियमनेकाकारा वक्रत्वविच्छित्तिश्चतुर्विधपदविषया वाक्यैकदेशजोवितत्वेनापि परिस्फुरन्ती सकलयाक्यवैचित्र्यनिबन्धनतामुपयाति । वक्रतायाः प्रकाराणामेकोऽपि कविकर्मणः । तद्विदाहादकारित्वहेतुतां प्रतिपद्यते ॥ (पृ० १६९) जहाँ पर इन वक्रता प्रकारों में से कई एक वक्रताप्रकार एक स्थल पर ही परस्पर एक दूसरे के सौन्दर्य को प्रस्तुत करने के लिए कवियों द्वारा उपनिबद्ध किए जाते हैं वहाँ ये नानाविध कान्ति से रमणीय वक्रता को प्रस्तुत करते हैं। _ वस्तुवक्रता अथवा पदार्थवक्रता द्वितीय उन्मेष में पद्वक्रता का भेद-प्रभेद सहित विवेचन कर चुकने के बाद कुन्तक ने तृतीय उन्मेष के प्रारम्भ में वस्तुवक्रता का विवेचन प्रस्तुत किया है। . (1) जहाँ पर विवक्षित अर्थ को प्रतिपादन करने में पूर्णतया समर्थ, एवं अनेक प्रकार की वक्रताओं से विशिष्ट शब्द के द्वारा ही अत्यन्त रमणीय स्वाभाविक धर्म से युक्त रूप में वस्तु का वर्णन किया जाता है, वहां वस्तुवकता होती है। ऐसी वस्तुबकता को प्रस्तुत करते समय कविजन बहुत से उपमादि अलङ्कारों का उपयोग नहीं करते क्योंकि वैसा करने से वस्तु की सहज सुकुमारता के म्लान हो जाने का भय रहता है। जहां कवियों को विभाव आदि के औचित्य से शारादि रसों को प्रतीति करानी होती है वहां वे इसी वस्तुवक्रता का सहारा लेते हैं । 'अलहारादि का उपयोग बहुत कम करते हैं। जहाँ कहीं भी अलहाकारों का उपयोग करते हैं वह केवल उस वस्तु की स्वाभाविक सुकुमारता को ही और भी अधिक समुन्मानित करने के लिए हो न कि किसी भलाहार वैचित्र्य को प्रस्तुत करने के लिए।
SR No.009709
Book TitleVakrokti Jivitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadhyshyam Mishr
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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