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________________ १५४ वक्रोक्तिजीवितम् afa की प्रौढि से निर्मित मनोहर एवं न अत्यन्त कोमल कान्ति वाला ही और न अधिक कठोरता को धारण करने वाला ही होता है। उक्त उदाहरण श्रवण सुभग तो है ही साथ ही साथ उसमें का पूर्वार्द्ध कोमल पदावली के प्रयुक्त होने से कोमल कान्तियुक्त है, उसमें कठोरता का अभाव है । एवं परार्ध में कुछ कठोर वर्णों के आने से कठोरता आई तो है लेकिन अधिक नहीं । अतः यह श्लोक मध्यम मार्ग के आभिजात्य गुण के रूप में डद्धृत किया गया है । एवं मध्यमं व्याख्याय तमेवोपसंहरति-अत्रेति । अत्रैतस्मिन् केचित कतिपये सादरास्तदाश्रयेण काव्यानि कुर्वन्ति । यस्मात् अरोचकिनः कमनीयवस्तुव्यसनिनः । कीदृशे चास्मिन् - छायावैचित्र्यरजके कान्तिविचित्रभावाह्लादके । कथम् - विदग्धनेपथ्यविधौ भुजङ्गा इव, अग्राम्याकल्पकल्पने नागरा यथा । सोऽपि छायावैचित्र्य रञ्जक एव । इस प्रकार ( ४६ - ५१ कारिकाओं द्वारा ) मध्यम ( मार्ग ) का व्याख्यान कर ( अब ) उसी का उपसंहार करते हैं— 'अत्र' इस ( ५२ वीं कारिका के द्वारा ) । यहाँ अर्थात् इस ( मध्यम मार्ग ) में कुछ ( इस मार्ग के प्रति ) आदरयुक्त ( कवि जन ) इस ( मार्ग ) का आश्रयण कर काव्यनिर्माण करते हैं। क्योंकि ( वे कवि जन ) अरोचकी अर्थात् रमणीय वस्तु के व्यसनी ( होते हैं ) । किस ढंग के इस ( मार्ग में ) - शोभा की विचित्रता के कारण रञ्जक अर्थात् कान्ति के वैचित्र्य से आनन्द प्रदान करने वाले ( इस भाग में रमणीय वस्तु के व्यसनी कविजन प्रवृत्त होते हैं ) । किस प्रकार से - वैदग्ध्यपूर्ण नेपथ्य के विधान में चतुरों की तरह अर्थात् ग्राम्य ( सभ्य ) वेशभूषा की सजावट में चतुर नगरनिवासियों की तरह ( रम्य वस्तुव्यसनी कवि इस मध्यम मार्ग में प्रवृत्त होते हैं ) । तथा वह ( सभ्य वेशभूषा की सजावट ) भी तो ( अपनी ) शोभा की विचित्रता से आह्लादजनक होता है । पुनः अत्र गुणोदाहरणानि परिमितत्वात्प्रदर्शितानि, प्रतिपदं पुनछायावैचित्र्यं सहृदयैः स्वयमेवानुसर्तव्यम् । अनुसरणदिक प्रदर्शनं क्रियते । यथा - मातृगुप्र - मायुराज-मञ्जीरप्रभृतीनां सौकुमार्यवैचित्र्यसंवलितपरिस्पन्दस्यन्दीनि काव्यानि सम्भवन्ति । तत्र मध्यममार्ग संवलितं स्वरूपं विचारणीयम् । एवं सहज सौकुमार्यसुभगानि कालिदाससर्वसेनादीनां काव्यानि दृश्यन्ते । अत्र सुकुमार
SR No.009709
Book TitleVakrokti Jivitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadhyshyam Mishr
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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