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________________ १४२ वक्रोक्तिजीवितम् एवं वैचित्र्यं सम्भावनानुमानप्रवृत्तायाः प्रतीयमानत्वमुत्प्रेक्षायाः । तञ्च धाराधिरोहणरमणीयतयातिशयोक्तिपरिस्पन्दस्यन्दि सन्दृश्यते । इस प्रकार सम्भावना के अनुमान से प्रवृत्त होने वाली उत्प्रेक्षा की प्रतीयमानता ( ही यहां पर ) नैचित्र्य है । और वह (वैचित्र्य ) चरम सीमा को पहुँची हुई सुन्दरता के कारण अतिशयोक्ति के विलसित प्रस्तुत करने वाला दिखाई पड़ता है। तदेवं वैचित्र्यं व्याख्यायातस्यैव गुणान ज्याचष्टे वैदग्न्स्यन्दि माधुर्य पदानामत्र बध्यते । याति यत्त्यक्तशैथिल्यं बन्धवन्धुरताङ्गताम् ॥४४॥ । इस प्रकार वैचित्र्य की व्याख्या कर अब उसके ही गुणों की व्याख्या प्रस्तुत करते हैं । ( सर्वप्रथम माधुर्य गुण का लक्षण प्रस्तुत करते हैं ) यहाँ उस विचित्र मार्ग में पदों के वैदग्ध्य को प्रवाहित करने वाले माधुर्य गुण को उपनिबद्ध किया जाता है जो शिथिलता का त्याग कर वाक्य विन्यास की रमणीयता का साधन बन जाता है ।। ४४ ।।। अत्रास्मिन् माधुर्य वैदग्भ्यस्यन्दिवैचित्र्यसमर्पकं पदानां बध्यते वाक्यैकदेशानां निवेश्यते । यत्त्यक्तशैथिल्यमुमितकोमलभावं भवद्वन्ध. बन्धुरताङ्गतां याति सनिवेशसौन्दर्योपकरणतां गच्छति । यथा 'किं तारुण्यतरोः' इत्यत्र पूर्वार्धेः ।। १०३ ॥ .. यहां इस विचित्रमार्ग में वाक्य के अवयवभूत पदों के वैदग्ध्य को प्रवाहित करने वाले अर्थात् विचित्रता को प्रदान करने वाले माधुर्य (गुण ) का सन्निवेश किया जाता है। जो शैथिल्य का त्याग कर अर्थात् कोमलता को परित्यक्त कर बन्ध के सौन्दर्य का अङ्ग अर्थात् संघटना की सुन्दरता का साधन बनता है जैसे-'कि तारुण्यतरो'.."इत्यादि पूर्वोदाहृत, ( उदाहरण सं० ६२ के पूर्वाद्धं में देखा जा सकता है ) ॥ १०३ ॥ टिप्पणी-विचित्रमार्ग के माधुर्य गुण के उदाहरण रूप में कुन्तक ने जिन पङ्क्तियों को उद्धृत किया है वे निम्न हैं कि तारुण्यतरोरियं रसभरोद्भिना नवा वल्लरी लीलाप्रोच्छलितस्य किं लहरिका लावण्यवारान्निधेः । इसका अर्थ उदाहरग संख्या ९२ पर देखें। यहां पर कवि ने-तारुण्यतरोः, रसभरोद्भिन्ना, नवा वल्लरी, लावण्यवाराग्निवेः आदि सभी ऐसे पदों का प्रयोग
SR No.009709
Book TitleVakrokti Jivitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadhyshyam Mishr
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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