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________________ १३४ वक्रोक्तिजीवितम् मे चाई जाती है अर्थात् अलौकिक ) सौन्दर्य के ) अतिशय की कोटि पर स्थापित कर दी जाती है। किस प्रकार से-उक्तिचित्र्यमात्र से अर्थात् केबल कहने के ढङ्ग की चतुरता द्वारा ( सौन्दर्य की परकाष्ठा को पहुंचा दी जाती है)। जैसे अण्ण लडहत्तण अण्णं विक्ष काइ बत्तणच्छाआ। सामा सामण्णपआवइणो रेह विअ ण होई ॥१६॥ (अन्यद् लटभत्वमन्यैव च कापि वर्तनच्छाया । श्यामा सामान्यप्रजापते रखैव च न भवति)॥ कवि पोडशवर्षीया सुन्दरी 'श्यामा' का वर्णन करता हम कहता है। विसका शरीर बाड़े में गरम, गर्मी में ठंढा रहता है एवम् सभी अङ्गों से शोभा सम्पन्न होती है जैसा उसका लक्षण बताया गया है कि शीतकाले भवेदुष्णा ग्रीष्मे च सुखशीतला । सर्वावयवशोभाढघा सा श्यामा परिकीर्तिता ॥ इस श्यामा की सुकुमारता दूसरे ही प्रकार की ( अनिर्वचनीय ) है एवम् शरीर की कान्ति कुछ ( अलौकिक ) ही है ( ऐसा समझ पड़ता है कि वह ) श्यामा सामान्य प्रजापति की सृष्टि ही न हो। ( अर्थात् वह ऐसे बलोकिक सौन्दर्य से युक्त है कि वैसा सौन्दर्य सामान्य प्रजापति की सृष्टि में सम्भव ही नहीं है, अतः उसकी रचना उनसे भिन्न किसी दूसरे ने ही किया होगा। यहां पर यद्यपि 'श्यामा का वर्णन कोई नवीन वर्णन नहीं है फिर भी कवि ने केवल उक्ति के वैचित्र्यमात्र से इस वर्णन में अपूर्व चमत्कार ला दिया है) ॥१६॥ यथा वा उहेशोऽयं सरसकदलीश्रेणिशोभातिशायी मुखोत्कर्षाकरितहरिणीविभ्रमो नर्मदायाः । किं चैतस्मिन् सुरतसुहृदस्तन्त्रि ते बान्ति वाता येषामग्रे सरति कलिताकाण्डकोपो मनोभूः ॥१७॥ अथवा जैसे ( इसी का दूसरा उदाहरण ) (कोई प्रेमी अपनी प्रेमिका से कहता है कि ) हे सुन्दरि ! सरस (हरेभरे) केनों की कतारों से उत्पन्न शोभा के अतिशय से युक्त तथा कुब्जों के उत्कर्ष से हरिणी के विलासों को अंकुरित करने वाला नर्मदा नदी का यह पदेश है और इस (प्रदेश ) में सम्भोग के मित्र वे हवाएं बहती है जिनके भागे बनवसर में भी क्रोधित होता हुमा कामदेव चलता है ॥ १७ ॥
SR No.009709
Book TitleVakrokti Jivitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadhyshyam Mishr
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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