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________________ प्रथमोन्मेषः ११९ अर्थात् स्वाभाविक ( न कि व्युत्पत्तिजन्य ) स्निग्धकान्ति से युक्त होता है, उसे आभिजात्य नामक गुण कहा जाता है जैसे ज्योतिर्लेखावलयि गलितं यस्य बह भवानी। पुत्रप्रीत्या कुवलयदलप्रापि कर्णे करोति ॥८॥ ( मेघदूत काव्य में देवगिरि पर स्थित स्वामिकात्तिकेय के वाहनभूत मयूर को नाचने के लिए प्रेरित करने के लिए कहते हुए यक्ष मेष से उस मयूर की विशेषता बताते हुए कहता है कि ) जिस (स्वामिकात्तिकेय के वाहन मयूर) के कान्तिमय रेखा के बलयवाले गिरे हुए पंख को भवामी ( पार्वती स्वामिकात्तिकेय की माता अपने-) पुत्र के प्रेम के कारण कमलदल से युक्त कान में (धारण) करती हैं । अर्थात् कर्णाभरण के रूप में उस पंख का प्रयोग भवानी करती हैं ॥ ७ ॥ ____अत्र श्रुतिपेशलतादि स्वभावममृणच्छायत्वं किमपि सहदयसंवेणं परिस्फुरति । यहां पर श्रुतिरमणीयतादि तथा स्वभावतः स्निग्ध कान्तियुक्तता कोई । अपूर्व एवम् अनिर्वचनीय सहृदयों का अनुभवगम्य तत्व परिस्फुरित होता है। ननु च लावण्यमाभिजात्यं च लोकोत्तरतरुणीरूपलमणवस्तुधर्मतया यत् प्रसिद्धं तत् कथं काव्यस्य भवितुमर्हतीति चेत्तम । यस्मादनेन न्यायेन पूर्वप्रसिद्धयोरपि माधुर्यप्रसादयोः काव्यधर्मत्वं विषटते । माधुर्य हि गुडादिमधुरद्रव्यधर्मतया प्रसिद्धं तथाविधाहादकारित्वसामान्योपचारात् काव्ये व्यपदिश्यते । तथैव च प्रसादः स्वच्छसलिलस्फटिकादि. धर्मतया प्रसिद्धः स्फुटावमासित्वसामान्योपचारात् झगितिप्रतीतिपेशलता प्रतिपद्यते । तद्वदेव च काव्ये कविशकिकौशलोल्लिखितकान्तिकमनीयं बन्धसौन्दर्य चेतनचमत्कारकारित्वसामान्योपचाराझावण्यशब्द.. व्यतिरेकेण शब्दान्तराभिधेयतां नोत्सहते । तथैव च काव्ये स्वभावमा सृणच्छायत्वमाभिजात्यशब्देनाभिधीयते । (पूर्वपक्षी प्रश्न करता है कि ) लावण्य और आभिजात्य जो अलौकिक तरुणी के सौन्दर्यरूप वस्तु के धर्मरूप से प्रसिद्ध है वह काम्प का युण रूप कैसे हो सकता है ? इस बात का उत्तर देते हुए कहते है कि यह प्रश्न ठीक नहीं क्योंकि इस न्याय का आश्रयण करने से पूर्वप्रसिद्ध माधुर्य एवं प्रसाद गुण भी काव्य के धर्म न हो सकेंगे क्योंकि मुड़ आदि मीठे पदार्थों के
SR No.009709
Book TitleVakrokti Jivitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadhyshyam Mishr
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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