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________________ वक्रोक्तिजीवितम् . इस प्रकार उदाहरण प्रस्तुत करने के लिए ये ( कविव्यापार) वक्रता के कुछ भेद प्रदर्शित किए गये। शेष तो इसके हजारों भेद सम्भव हो सकते हैं, इन्हें सहृदय लोग स्वयं महाकवियों के प्रवाह ( अर्थात् काव्यों ) में देखें। एयं वाक्यावयवानां पदानां प्रत्येकं वर्णाद्यवयवद्वारेण यथासम्भवं वक्रमावं व्याख्यायेदानी पदसमुदायभूतस्य वाक्यस्य वक्रता व्याख्यायते इस प्रकार वाक्य के अवयव रूप ( सुबन्त तथा तिङन्त ) पदों में से प्रत्येक की ( उनके ) वर्णादि अवयवों के माध्यम से, यथासम्भव वक्रता की व्याख्या कर अब पद के समुदाय रूप वाक्य की वक्रता की व्याख्या करते हैं : याक्यस्य वक्रभावोऽन्यो भिद्यते यः सहस्रधा । यत्रालङ्कारवर्गोऽसौ सर्वोऽप्यन्तर्भविष्यति ॥ २० ॥ - (पद के समुदायभूत ) वाक्य की वक्रता (पूर्वोक्त पदादि-वक्रता से भिन्न ) दूसरी (ही) है, जो हजारों प्रकार के भेदों से युक्त है । तथा जिसमें (कवि प्रसिद्ध उपमा आदि) अलङ्कारों का समुदाय सब (का सब) अन्तर्भूत हो जाता है ॥ २० ॥ वाक्यस्य वक्रमावोऽन्यः । वाक्यस्य पदसमुदायभूतस्य | आख्यातं । साव्ययकारकविशेषणं वाक्यमिति यस्य प्रतीतिस्तस्य श्लोकादेवक्रमावो भङ्गीमणितिवैचित्र्यम् अन्यः पूर्वोक्तवक्रताव्यतिरेकी समुदायवैचित्र्यनिवन्धनः कोऽपि सम्भवति । यथा वाक्य का वक्रभाव अन्य (ही) है। वाक्य का अर्थात् पदों के समूह रूप (वाक्य) का। 'अव्यय कारक तथा विशेषणों से युक्त आख्यात (क्रिया पद) वाक्य होता है' इस प्रकार जिसकी प्रतीति होती है, उस श्लोकादि ( वाक्यों का ) वक्रभाव अर्थात् भनीभणितिवैचित्र्य अन्य अर्थात् (१६ वीं कारिका में प्रतिपादित वर्णविन्यास वक्रता आदि) पूर्वोक्त (पद की) वक्रताओं से अतिरिक्त समुदाय (भत वाक्य ) की विचित्रता का सम्पादन करनेवाला कोई (दूसरा भेद ) सम्भव होता है । जैसेउपस्थितां पूर्वमपास्य लक्ष्मी वनं मया सार्धमसि प्रपन्नः। त्वामाश्रयं प्राप्य तया नु कोपात्सोढास्मि न त्वद्भवने वसन्ती ॥ ७० ॥ ('रघुवंश' महाकाव्य में भगवान् श्री राम के द्वारा परित्यक्त सीता, उन्हें जङ्गल में छोड़ कर लौटते हुए लक्ष्मण द्वारा राम के प्रति सन्देश भेजती है कि )
SR No.009709
Book TitleVakrokti Jivitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadhyshyam Mishr
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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