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________________ ४८ वक्रोक्तिजीवितम् ये दोनों ( शब्द और अर्थ ) अलङ्कार्य हैं, और चातुर्यपूर्ण भङ्गिमा से किया गया कथनस्वरूप वक्रोक्ति ही दोनों का ( एकमात्र ) अलङ्कार कहा जाता है ॥ १० ॥ उभौ द्वावप्येतौ शब्दार्थावलंकार्यावलंकरणीयौ केनापि शोभातिशयकारिणालंकरणेन योजनीयौ। किं तत्तयोरलकरणमित्यभिधीयतेतयोः पुनरलंकृतिः । तयोद्वित्वसंख्याविशिष्टयोरप्यलंकृतिः पुनरेकैक, यया द्वावप्यलंक्रियेते .। कासौ-वक्रोक्तिरेव । वक्रोक्तिः प्रासिद्धाभिधानव्यतिरेकिणी विचित्रैवाभिधा । कीदृशी-वैदग्ध्यभङ्गीभणितिः । वैदग्ध्यं विदग्धभावः कविकर्मकौशलं तस्य भङ्गी विच्छित्तिः, तया । भगितिः विचित्रैवाभिधा वकोक्तिरित्युच्यते । तदिदमत्र तात्पर्यम्-यत् शब्दार्थों पृथगवस्थितौ केनापि व्यतिरिक्तेनालंकरणेन योज्येते, किन्तु वक्रतावैचित्र्ययोगितयाभिधानमेवानयोरलंकारः, तस्यैव शोभातिशयकारित्वात् । एतच्च वक्रताव्याख्यानावसर एवोदाहरिष्यते।। __उभी अर्थात् ये दोनों ही शब्द और अर्थ अलङ्कार्य अर्यात् अलङ्करणीय होते हैं, किसी शोभातिशय को उत्पन्न करने वाले अलङ्कार के द्वारा युक्त करने योग्य होते हैं। ( फिर ) उन दोनों का अलङ्कार क्या है यह कहते हैं-और उन दोनों का ( एक ) अलङ्कार होता है। तयोः अर्थात् द्वित्व संख्या से विशिष्ट ( शब्द और अर्थ दो ) होने पर भी अलङ्कार केवल एक ही होता है, जिसके द्वारा दोनों ही अलंकृत किए जाते हैं। वह कौन-सा ( अलंकार ) है? वक्रोक्ति ही ( वह अलंकार है)। वक्रोक्ति अर्थात् प्रसिद्ध कथन से भिन्न ( व्यतिरिक्त ) विचित्र प्रकार का कथन ही ( वक्रोक्ति है )। कैसी वक्रोक्ति ( शब्द और अर्थ दोनों का अलङ्कार है ) वैदग्धपूर्ण भङ्गिमा द्वारा कथन ( ही वक्रोक्ति है) वैदग्ध्य अर्थात् विदग्ध (चतुर ) का भाव ( चातुर्य अर्थात् ) कवि के कर्म ( काव्य ) की कुशलता, उसकी भङ्गी अर्थात् शोभा ( विच्छित्ति ) उसके द्वारा कथन अर्थात् विचित्र प्रकार की उक्ति ही 'वक्रोक्ति' कही जाती है। तो इसका तात्पर्य यह है-कि शब्द और अर्थ अलग स्थित होकर किसी ( अपने से ) भिन्न अलङ्कार से युक्त किए जाते हैं, परन्तु वक्रता के वैचित्र्य से युक्तरूप से कथन ही इन दोनों ( शब्द और अर्थ ) का अलङ्कार होता है, उसी के शोभाधिक्य के जनक होने के कारण ( अर्थात् वक्रतापूर्ण कथन ही इन शब्द और अर्थ दोनों में शोभाधिक्य को उत्पन्न करता है, अतः वही इनका. एकमात्र मलङ्कार हुआ) इस बात का उदाहरण वक्रता की व्याख्या करते समय ही दिया जायगा।
SR No.009709
Book TitleVakrokti Jivitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadhyshyam Mishr
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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