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________________ ३८ वक्रोक्तिजीवितम् की वक्रता है । ) 'सम्प्रति' ( इस समय ) और 'द्वयं' ( दोनों) ये पद भी अत्यन्त रमणीय हैं- क्योंकि पहले तो एक वही ( चन्द्रकला ही कपाली के समागमरूप ) दुर्व्यसन से दूषित होने के कारण शोचनीय हो गई थी और फिर अब तुमने भी उस ( चन्द्रकला ) के उस प्रकार के दुरव्यवसाय (दुःखदायी उत्साह) में सहायता सा करना प्रारम्भ कर दिया है इस प्रकार (भिक्षुवेषधारी शिव द्वारा पार्वती का) उपहास किया जा रहा है । 'प्रार्थना' शब्द भी अत्यधिक रमणीय है, क्योंकि अकस्मात् ( काकतालीय योग से ) हो गया उस कपाली का समागम शायद वाच्यता ( निन्दा ) का वहन न करता किन्तु यहाँ (उस कपाली के समागम की) प्रार्थना अत्यन्त ही कुलीन (कुल) में उत्पन्न होनेवाली ( तुम्हारे लिए ) कलङ्ककारिणी है । 'सा च' 'त्वं च' इति द्वयोरप्यनुभूयमानपरस्परस्पर्धिलावण्यातिशवप्रतिपादनपरत्वेनोपात्तम् । 'कलावतः' 'कान्तिमती' इति च मत्वर्थीयप्रत्ययेन द्वयोरपि प्रशंसा प्रतीयत इत्येतेषां प्रत्येक कश्चिदप्यर्थः शब्दान्तराभिधेयतां नोत्सहते । कविविवक्षितविशेषाभिधानक्षमत्वमेव वाचकत्वलक्षणम् । यस्मात्प्रतिभायां तत्कालोल्लिखितेन केनचित्परिस्पन्देन परिस्फुरन्तः पदार्थाः प्रकृतप्रस्तावसमुचितेन केनचिदुत्कषण वा समाच्छादितस्वभावाः सन्तो विवक्षाविधेयत्वेनाभिधेयतापदवीमवतरन्तस्तथाविधविशेष प्रतिपादन-समर्थेनाभिधानेनाभिधीयमानाश्चेतनचमत्कारितामापद्यन्ते । यथा .. 'सा च (वह) और 'स्व' (तुम) ये दोनों पद ( चन्द्रकला और पावंती) दोनों के अनुभूयमान परस्पर स्पर्धा करनेवाले लावण्य के अतिशय का प्रतिपादन करने के लिए ग्रहण किए गए हैं । 'कलावतः' और 'कान्तिमती' इन पदों में मत्वर्षीय प्रत्यय के द्वारा दोनों (चन्द्रमा एवं उसकी कमा) की प्रशंसा प्रतीत होती है। इस प्रकार ( इस श्लोक में प्रयुक्त) इन सभी पदों का प्रत्येक कोई भी अर्थ दूसरे शब्द द्वारा अभिधेयता को बहन नहीं कर सकता (अर्थात् यदि कवि द्वारा प्रयुक्त इस श्लोक के प्रत्येक पदों के स्थान पर उसका पर्यायवाची दूसरा शब्द रखा जाय तो वह विवमित अर्थ को देने में असमर्थ अतः चमत्कारहीन हो जायगा।) (अतः) कवि के द्वारा कहने के लिए अभिप्रेत विशेष ( अर्थ ) का अभिधान करने की समता का होना ही वाचकत्व का भक्षण हैं। जिससे (कवि की) प्रतिभा में उस (काम्परचना के) समय उम्मिषित हुए किसी स्वभावविशेष के
SR No.009709
Book TitleVakrokti Jivitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadhyshyam Mishr
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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