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________________ १९०] • तारण-वाणी ऊपर के गुणस्थानों को निर्विकल्पता में भेर यह है कि परिणामों की मगनता ऊपर के गुणस्थानों में विशेष है। सम्यग्दर्शन तो चौथे गुणस्थान से चौदहवें तक एक सा ही होता है किन्तु ज्ञान और चारित्र की निर्मलता अर्थात् विशेषता क्रमशः होतो है, इसीलिये सम्यग्दर्शन ( सम्यक्त्व ) के भेद किये गये हैं । हां, यह अवश्य है कि सम्यग्दर्शन के साथ ज्ञान और चारित्र प्रगट हो ही जाता है । गुणस्थानों का चढ़ाव अंतरंग चारित्र पर ही निर्भर है। अनन्तानुबन्धी कषाय के साथ जिस प्रकार का भय रहता है उस प्रकार का भय सम्यग्दष्ट को नहीं होता। सम्यग्दर्शन होने पर भी ज्ञान और चारित्र की वृद्धि करनी चाहिये । ज्ञान के लिये अध्ययन और चारित्र के लिये ध्यान का अवलम्बन आवश्यक है। और ध्यान के लिये एकान्तवास करना । दर्शन कारण और चारित्र कार्य है। यह नियम सम्यक् और मिथ्या दोनों तरफ लागू होता है। अर्थात् सम्यग्दर्शन सम्यक् चारित्र की और मिथ्यादर्शन मिथ्याचारित्र की वृद्धि का कारण होता है। दर्शनमोह अपरिमित मोह है और चारित्रमोह परिमित । सम्यक्त्व की उत्पत्ति से संसार की जड़ कट जाती है, किन्तु दूसरे कर्मों का उसी क्षण सर्वनाश नहीं हो जाता। जैसे जड कट जाने पर बृक्ष गिर जाता है किन्तु तत्क्षण सूख नहीं जाता, सूखने में समय लगता ही है। जिसने निजस्वरूप को उपादेय जानकर श्रद्धा की उसका मिध्यात्व मिट गया, किन्तु पुरुषार्थ को हीनता से चारित्र अंगीकार करने की शक्ति न हो तो जितनी शक्ति हो उतनी ही करे । ऐसी श्रद्धा करने वाले के भगवान ने सम्यक्त्व कहा है। ध्यान रहे कि शक्ति को छिपावे भी नहीं। सम्यग्दृष्टि जीव शुभराग को तोड़कर वीतराग चारित्र के साथ अल्पकाल में तन्मय हो जायगा इतना सम्बन्ध बताने के लिये उस निश्चय सम्यग्दर्शन को श्रद्धा और चारित्र की एकत्व अपेक्षा से व्यवहार सम्यग्दर्शन कहा जाता है। न कि सच्चे देव गुरु शास्त्र का नाम ले लेने मात्र से हम व्यवहार सम्यग्दृष्टि हो जाते हैं। यह मान्यता भ्रम है। आत्मा की प्रभुता की महिमा भीतर परिपूर्ण है, अनादिकाल से उसकी सम्यक् प्रतीति के बिना उसका अनुभव नहीं हुआ, अनादिकाल से पर-लक्ष्य किया है किन्तु स्वभाव का लक्ष्य नहीं किया।
SR No.009703
Book TitleTaranvani Samyakvichar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami
PublisherTaranswami
Publication Year
Total Pages226
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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