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________________ सम्यक्त्व-माहाहाय 8 सम्यक्त्वहीन जीव यदि पुण्य सहित भी हो तो भी ज्ञानीजन उस पापी कहते हैं । क्योंकि पुण्य-पाप रहित स्वरूप की प्रतीति न होने । से पुण्य के फल की मिठास में पुण्य का व्यय करके, स्वरूप की प्रतीति रहित होने से पाप में जायगा। - सम्यकत्व सहित नरकवास भी भला है और सम्यकत्वहीन होकर देवलोक का निवास भी शोभास्पद नहीं होता । . संसार रूपी अपार समद्र से रत्नत्रय रूपी जहाज को पार करने के लिये सम्यग्दर्शन चतुर खेवटिया ( नाविक) के समान है। जिस जीव के सम्यग्दर्शन है वह अनंत सुख पाता है और जिस जीव के सम्यग्दर्शन नहीं है वह यदि पुण्य करे तो भी अनंत दुःखों को भोगता है। इस प्रकार सम्यग्दर्शन की अनेकविध महिमा है, इसलिये जो अनंत सुख चाहते हैं उन समस्त जीवों को उसे प्राप्त करने का सर्व प्रथम उपाय सम्यग्दर्शन ही है।
SR No.009702
Book TitleTaranvani Samyakvichar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami
PublisherTaranswami
Publication Year
Total Pages64
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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