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________________ ५७ श्री जम्बूस्वामी चरित्र भवदेव के जीव का शिवकुमार के रूप में अवतरण पूर्वविदेह के उसी पुष्कलावती देश में एक वीतशोकापुरी नाम का नगर भी है, जिसकी दीवालें चंद्रकांत मणियों से निर्मित होने से वहाँ की महिलायें उनमें अपना प्रतिबिम्ब देखा करती थी। वहाँ के लतागृह अत्यंत रमणीक हैं। वहाँ के दम्पति लोग उपवन की गलियों में सैर करते हुए सरोवरों के तटों पर जलक्रीड़ा किया करते थे। वहाँ का चक्रवर्ती राजा महापद्म महा बलवान था। जिसका प्रताप एवं कीर्ति तीनों जगत में फैली हुई थी। वह १. महापद्म, २. पद्म, ३. शंख, ४. मकर, ५. कच्छप, ६. मुकुंद, ७. कुंद, ८. नील और ९. स्वर्ण - इन नव निधियों का एवं १. सेनापति, २. गृहपति, ३. पुरोहित, ४. गज, ५. घोड़ा, ६. सूत्रधार, ७. स्त्री, ८. चक्र, ९. छत्र, १०. चमर, ११. मणि, १२. कामिनी, १३. खड्ग और १४. दंड - इन चौदह रत्नों का स्वामी था। छह खण्ड में जिसका एक छत्र राज्य प्रवर्त रहा था। बत्तील हजार मुकुटबद्ध राजा उसकी सेवा करते थे। वह छियानवे हजार रानियों का वल्लभ था। उसकी एक वनमाला नाम की रानी थी, उसकी कुक्षी से भवदेव के जीव ने सानत्कुमार स्वर्ग से आकर शुभ दिन और शुभ नक्षत्र में जन्म लिया। चक्रवर्ती एवं उनके बंधुवर्ग ने उसका नामकरण संस्कार कर शिवकुमार नाम रखा। वह बालक 'यथा नाम तथा गुण' सम्पन्न था। वह बालक शिशुवय में माता-पिता आदि अनेक जनों की गोद में केलि करता हुआ चन्द्रकलाओं के समान वृद्धि को प्राप्त होने लगा। अहो! यत्र, तत्र, सर्वत्र पवित्रता के साथ पुण्य का संगम भी जगत को आश्चर्यचकित कर देता है। शिवकुमार का विद्याभ्यास, विवाह व गृहस्थावस्था ___ परिवारजनों को आनंदित करते हुए शिवकुमार अब आठ वर्ष के हो गये। वे व्याकरण साहित्यादि शास्त्रों को अर्थ सहित पढ़ने लगे। उन्होंने शस्त्रविद्या, संगीत, नाटक आदि अनेक विद्याओं में कुशलता
SR No.009700
Book TitleJambuswami Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimla Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1995
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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