SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 144
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४० जैनधर्म की कहानियाँ ___ आज हम मात्र एक रात्रि की तत्वचर्चा के समागम से पवित्र हुई हैं, निर्मल हुई हैं। हमारा चित्त शांत हो गया है। हमें वैराग्य का मार्ग मिल गया है। हम किंचित् भी शिथिलता न करते हुए प्रात:काल की मंगल बेला में निकटवर्ती उद्यान में विराजमान पूज्य सुप्रभा आर्यिकाजी के निकट जिनदीक्षा धारण करने की भावना रखती हैं। आप हमें भी सहर्ष अनुमति प्रदान करके कृतार्थ कीजिए। हे माते! उपकार करो, अनुमति दो। हम चारों दासियाँ आपके चरणों की अधिक सेवा न कर सकीं, इसके लिए हमें क्षमा कीजिए, परन्तु आत्महित के सिवाय और कोई उत्तम मार्ग ही नहीं, है।" इतना सुनते ही माता विह्वल होकर रोने लगी। वह किसी वधु के माथे पर हाथ फेरती तो किसी वधु के गालों पर हाथ फेरती, किसी वधु को हृदय से चिपकाती तो किसी वधु के कपालों को चूमती हुई बोली - "हे बेटा, कम से कम तुम तो दीक्षा धारण न करो। मैं अब किसके सहारे रहूँगी। कम से कम तुम्हें ही देख-देखकर तुम्हारे ही साथ में तत्त्वचर्चा आदि सत्समागम करते हुए स्थितिकरण को प्राप्त होऊँगी। तुम चारों यहीं रुको, वन-खण्डादि में जाकर अपने-आपको सजा मत दो, तुम यहीं मनोवांछित भोग भोगो।" इसतरह नानाप्रकार से माता जिनमती उन्हें समझाने लगी। लेकिन चारों वधुएँ बोली - "हे माते! आप ही कहो कि क्या हमें यह शोभा देगा कि हमारे स्वामी वन-खण्डादि में वास करें और हम महलों में ? हमारे स्वामी भूमि-शयन करें और हम कोमल सेजों पर शयन करें। हमारे नाथ योग धारण करें और हम भोगों में रहें ? आप शोक छोड़कर हमें भवदधि-तारक जिनशासन की शरण में जाने दो। हम स्त्री-लिंग छेदकर सिद्धशिला हमारे स्वामी के मध्य ही नहीं, अनंत सिद्धों के मध्य वास करेंगी। हे माते ! आज्ञा दो।" जम्बूकुमार की दीक्षा दृढानिर्णयवंत, शाश्वत आत्मिक आनंद के पिपासु श्री जम्बूकुमार के लिये वह मंगल प्रभात उदित हो ही गया, जिसकी उन्हें चिर-प्रतीक्षा थी। मंगल प्रभात का मौन खुला तो इस रूप में खुला - "हे
SR No.009700
Book TitleJambuswami Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimla Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1995
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy