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________________ श्री जम्बूस्वामी चरित्र रक्षा करो। मेरे बेटे को सद्बुद्धि दो। मेरी फूल-जैसी सुकोमल वधुयें वन-खण्डादि में तप को कैसे धारण करेंगी? कैसी रहेंगी?' __इतना कहकर माता फूट-फूट कर रोने लगी। तब चारों वधओं ने उन्हें समझाते हुए उनको आसन पर बैठाया। कोई उनके पैर दबा रही है, कोई सिर दबा रही है तो कोई उनके अश्रु पोंछ रही है और कोई संबोधित कर रही हैं - "हे माते ! हम चारों का सौभाग्य है कि हमें ऐसे महा ज्ञानी-ध्यानी कुमार का समागम मिला। यदि किसी कामी पुरुष के समागम में गयी होती तो हम सभी अपने जीवन को लुटता हुआ ही पातीं, विषय-भोगों में हम अपना कीमती भव हार गयी होतीं। जिनशासन का पाना, देव-शास्त्र-गुरु का पाना हमारा व्यर्थ ही चला जाता। अनंत भवों में हमें सच्चे देव-शास्त्र-गुरु मिले थे, हमने बाह्य द्रव्यलिंग भी धारण किया था। ग्यारह अंग, नौ पूर्व का ज्ञान भी किया था, परन्तु हे माते ! आज जैसी विरक्ति, आज जैसा मंगलमयी परिणाम कभी नहीं पाया था। आज हम सभी धन्य हो गयी हैं, हमारा यह विवाह सफल हो गया है। यदि हमारा विवाह कुमार से न हुआ होता तो आज हमें ये दशा, ये वीतरागी भावना न प्रगटी होती। मात्र एक रात्रि के समागम से, कुमार की निकटता से, उनकी आत्मा के तेज से, उनके तेज के प्रभाव से हम चारों का चित्त विषय-भोगों से हटकर आत्माराधना में लग गया है। हम विरक्त हो गयी हैं। ये विवाह हमारे लिए वरदान साबित हुआ है। माते! ये हमारा अंतिम विवाह है, अब हम शीघ्र ही स्त्री देह को छेदकर, सकल-संयम को धारकर मोक्ष प्राप्त करेंगी। इसलिए आप प्रमुदित हों, प्रसन्न हों, आपका किंचित् भी अपराध नहीं है। हमारा तो पहले से ही नियोग था, कुमार के साथ। __ भगवान की दिव्य देशना से कुमार भी जानते थे। हम भी यह जानते थे और सभी जानते थे; परन्तु हे माते! हमने तो अपने विकल्प को मिटाने के लिए कुमार से विवाह किया था। हमने तो उनकी वैराग्य बोधक चर्चा से अपनी विषय-कामना मिटाने के लिए और विरक्त होने के लिए ही जान-बूझकर कुमार से विवाह किया था।
SR No.009700
Book TitleJambuswami Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimla Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1995
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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