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________________ श्री जम्बूस्वामी चरित्र ११५ सेवक - "अरे, रे, इन कन्याओं के दुर्भाग्य की बात मुझे कहना पड़ रहा है। हे श्रेष्ठी! कुमार का मन जिन-दीक्षा लेने को तैयार है। अत: उन्होंने विवाह करने से इन्कार कर दिया है। उनके माता-पिता आदि ने उन्हें बहुत समझाया, अनेक प्रकार की युक्तियों एवं प्यार से समझाया, परन्तु कुमार किसी भी तरह से विवाह को तैयार नहीं हुए हैं।" सागरदत्त श्रेष्ठी ने यह समाचार अन्य तीनों श्रेष्ठियों को भी सूचित करा दिया। तीनों श्रेष्ठी सागरदत्त श्रेष्ठी के पास आये। चारों ओर उदासी छा गई। सभी सोच में पड़ गये, अब क्या किया जाय ? धनदत्त - “क्यों न हम सभी जम्बूकुमार के पास चलकर अनुनय-विनय करने का प्रयत्न करें ? चलो, हम सभी को चलना चाहिए।" सागरदत्त - "जब माता-पिता के ही सब प्रयास विफल हो गये, तब हम जाकर क्या करेंगे? क्या चरम-शरीरी कुमार के वैराग्य को भी बदला जा सकता है? मुझे तो यह असंभव लगता है। फिर इस मंगलमयी परिणाम की तो हमें अनुमोदना करनी ही चाहिए।" तब अन्य श्रेष्ठिजन अत्यंत दुखित चित्त से दीर्घ श्वाँस छोड़ते हुए बोले - “यदि कुमार कुछ काल संसार में रुककर हमारी पुत्रियों के सौभाग्य-तिलक बनते तो कितना अच्छा होता। अब इस लोक में उन जैसा वर हम कहाँ से लायेंगे? हाय! कैसी भाग्य की विडम्बना है।" __उनकी आँखों में अश्रु छलछला आये। तब सागरदत्त सभी को धीरज बँधाते हुए बोले - “होनहार के आगे किसका वश है? अतः शोक छोड़कर पुत्रियों के हित का विचार करो। उन्हें यह समाचार मिलेगा तो उन पर क्या बीतेगी? अत: चलो, प्रथम तो हम उन्हें सांत्वना देते हुए उन्हें इस समाचार से अवगत करायें।'' चारों श्रेष्ठियों ने अपनी-अपनी कन्या ओं एवं उनकी माताओं को बुलाकर एकत्रित किया और उनका वार्तालाप होने लगा। सागरदत्त . हे पुत्रियों! तुम सभी ने पूज्य सुप्रभा आर्यिकाजी के सान्निध्य में वस्तुस्वभाव को समझा है, प्रत्येक वस्तु नित्य रहकर भी पलटती है। परिणमन स्वभाव में विचित्रता होती है। कभी मंदता
SR No.009700
Book TitleJambuswami Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimla Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1995
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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