SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 116
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११२ जैनधर्म की कहानियाँ दीक्षा देकर अनुगृहीत कीजिए।" सौम्य मुद्रावंत, चर ज्ञान से सुशोभित आचार्यवर्य श्री सुधर्माचार्य ने अपने अवधिज्ञान से उसे अति निकट भव्य जानकर मधुर वचनों से कहा - "हे भव्य! यदि तुम्हारे मन में जिन-दीक्षा की तीव्र उत्कंठा है तो तुम अपने घर जाकर अपने माता-पिता, बंधुवर्ग से सम्मति लेकर एवं उनके प्रति हुए अपराधों को क्षमा कराके आओ। तभी तुम कर्मक्षयकारी आनंददायिनी दीक्षा पाने के पात्र होओगे।" जम्बूकुमार मन में विचारते हैं - "पूज्य आचार्यवर्य की आज्ञा का उल्लंघन करना तो योग्य नहीं है। घर नहीं जाने का हठ करना भी योग्य नहीं। इसलिए गुरु-आज्ञा को शिरोधार्य कर अपने को घर जाना चाहिए।" इसप्रकार का विचार करके जम्बूकुमार गुरु को नमस्कार करके घर की ओर जा रहे हैं, परन्तु मन में एक ही धुन. सवार है - "मैं घर से शीघ्र वापिस आकर जिनदीक्षा लँगा।" घर पहुँचकर विरक्त कुमार उदास हो एकान्त स्थान में बैठ गये। माता जिनमती तो पुत्र की विजय सुनकर फूली नहीं समा रही थी, लेकिन पुत्र को उदास-उदास देखा तो वे कुछ समझ नहीं पाईं। पुत्र के सिर पर स्नेह से हाथ फेरती हुई पूछने लगीं - “बेटा! तुम उदास क्यों हो? आज तो तुम विजयश्री प्राप्त करके आये हो, फिर प्रसन्नता के बदले उदासी क्यों?' तब जम्बूकुमार ने अपने हृदय की सभी बातें माता को शांतभाव से कह दी - "हे माता! अब मुझे इस संसार में रहना एक क्षण भी नहीं सुहाता है। मुझे संसार, देह, भोगों को त्यागकर शीघ्र ही जिन-दीक्षा लेना है। अब मैं अपने पाणि-पात्र में प्राप्त हुआ आहार ही ग्रहण करूँगा। मुझे अब ये महल नहीं सुहाते, मैं तो वन-खंडादि में रहँगा और अतीन्द्रिय आनंद में केलि करूँगा। संतों की शीतल छाया ही सुखदायिनी है।" पुत्र के वचन सुनकर माता जिनमती पवन के झकोरों से काँपती हुई ध्वजा के समान काँपने लगी। गर्मी के ताप से मुरझाई हुई कमलिनी के समान माता आँखों में अश्रु भरती हुई बोली - "बेटा !
SR No.009700
Book TitleJambuswami Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimla Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1995
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy