SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 102
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ९८ जैनधर्म की कहानियाँ जम्बूकुमार का खड्ग युद्ध पुनः व्योमगति विद्याधर ने जम्बूकुमार से खड्ग लेने का निवेदन किया, तब जम्बूकुमार खड्ग को हाथ में लेकर विमान पर चढ़ गये। लेकिन वे अपने मन में विचारते हैं - "वीरों की वीरता प्राणियों को प्राणरहित करने में नहीं है। अत: मेरी वीरता तो शुक्लध्यान की खड्ग से कर्मशत्रु को जीतने में हैं।' अरे रे! यह क्या ? रत्नचूल और जम्बूकुमार का घमासान युद्ध होने लगा। देखो, जम्बूकुमार युद्ध के मैदान में भी दयाभाव पूर्वक धीमी गति से खड्ग का प्रहार करते हैं, परन्तु उस खड्ग के प्रहार के सामने बिचारे हीन संहनन के धारी विद्याधर और उसकी सेना भला कैसे जीवित रह सकती है? अतः जो भी उससे लड़ता वह मृत्यु की ही शरण ग्रहण करता, परन्तु व वज्रशरीरी जम्बूकुमार पर किसी भी प्रकार के प्रहार से कुछ भी असर नहीं कर पा रहे हैं। इतने ही में किसी गुप्तचर ने जाकर मृगांक राजा को कहा - “हे राजन् ! आपके पुण्य-प्रताप से कोई महान योद्धा आया है, जो शत्रु की सेना को नष्ट-भ्रष्ट करने में वज्र के समान है। वह बड़ी चतुराई से युद्ध कर रहा है। या तो वह आपका कोई बन्धु है या पूर्व-जन्म का मित्र है या श्रेणिक राजा ने कोई वीर योद्धा भेजा है?" गुप्तचर द्वारा दिये गये समाचार को सुनकर राजा मृगांक आनंदित हो गया, तब वह भी अपनी सभी प्रकार की सेना को साथ में लेकर नगर के बाहर निकला। सेना के नगाड़ों की ध्वनि सुनकर रत्नचूल मृगांक को आया जान क्रोधाग्नि से भड़क उठा। दोनों में भयंकर प्रलयकारी युद्ध छिड़ गया। सेनाओं का सेनाओं के साथ, हाथियों का हाथियों के साथ, घोड़ों का घोड़ों के साथ, रथों का रथों के साथ और विद्याधरों का विद्याधरों के साथ युद्ध होने लगा। रुधिर की धारा तो समुद्र बनकर बहने लगी। हाथियों एवं घोड़ों के खुरों से इतनी अधिक धूल उड़ रही थी कि वहाँ रात्रि-दिन का भेद ही नहीं दिख रहा था। रथों के
SR No.009700
Book TitleJambuswami Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimla Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1995
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy