SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लेखमा 'माघ सु० ४ खौ' छे. त्रीजना दिवसे सोमवार, अने चौथना दिवसे रविवार, ए केम बनी शके ? संभव छे के कदाच वांचवामां गडबड थई होय. अथवा ए तिथि लखवामांज गडबड पहेलेथी होय. आलेखसंग्रहना संबंधां बीजी घणी घणी बाबतोना उल्लेखनो अवकाश छे, दाखला तरीके कया कया गच्छोमांथी कई कई शाखाओ नीळी अने ते शा कारणथी ? विगेरे, परन्तु आ बधी बाचतो भविष्यना भागो उपर-बल्के तमाम लेखोनी तारवणीरूप सौथी छेला बहार पाडवाना भाग उपर राखी, हाल तुर्त तो आ लेखसंग्रहमां आपेली हकीकतो ऊपरथी - अनुक्रमणिकाओ ऊपरथीज इतिहास प्रेमियो यथायोग्य लाभ उठावे, एटलुं इच्छी शासनदेव हवे पछीना भागो बहु जलदी बहार पाडवानुं सामर्थ्य अर्पे एज इच्छी विरमुं हुं शिवपुरी ( ग्वालियर ) ज्येष्ठ सु. १,२४५५ धर्म सं. ७ } विद्याविजय.
SR No.009688
Book TitlePrachin Lekh Sangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri, Vidyavijay
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1929
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size81 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy