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________________ जे जे लेखोमां ज्यां ज्यां अशुद्ध लखायुं छे, ते ते लेखोमां तेनी सहामे ( ) आम चिन्ह करी शुद्ध लखवामां आवेल छे. ज्यारे [ ] चिन्हनी अंदर आपेल अक्षरो - शब्दो स्वतंत्रताथी - विशेष समजवाने माटे मूकनामां आव्या छे. शिलालेखो उपरथी केटलीये ज्ञातव्य बाबतो आपणी नजरे पडे छे. दाखला तरीके केटलाक लेखोमां तीर्थकरना नामनी साथे जीवितस्वामी ' विशेषण आपवामां आवेलं होय छे. आनो अर्थ ए नथी के ते तीर्थंकरनी विद्यमानतामा ए मूर्ति भराववामां आवी हती. आमां आवेला लेखोमांज नहिं, परन्तु घणे स्थळे पाषाणनी के धातुमूर्तियो उपरना लेखोमां जीवितस्वामी श्री महावीर स्वामी, जीवितस्वामी श्री नेमिनाथ प्रभु इत्यादि लखवामां आवेलुं होय छे. आनुं कारण समजवुं कठिन छे. मने लागे छे के ' जयवंत ' ना अर्थमां कदाच जीवित अथवा 6 जीवंत ' शब्द मूकातो हशे . ( अत्यारे गुजरातीमां तो नहिं, परन्तु हिंदीमां घणे भागे एवो रिवाज छे के जो एक शब्दने बे वार लखवानी जरुर पढे छे, तो तेने एकवार लखीने तेनी आगळ २ मूत्रवामां आवे छे. दाखला तरीके उसने मेरेको पूछ २ कर हैरान किया । ' पूछ' शब्दने बेवार नहिं खतां तेनी आगळ २ मूकवामां आवे छे. आ रिवाज कोइक अंशे सोळा शतकमां पण हतो, एम एक लेख उपरथी जणाय छे. जूओ ३४५ नंबरनो लेख. श्री २ श्रीमाल आ बगडो बीजीवारना 'श्री' ने सूचवे छे. प्राचीनलेखोमां आ प्रवृत्ति बहुज ओछी जोवाय छे. लेख नं. ३३० अने ३३१ मां एक विचित्रता छे. ३३० नंबरना लेखमां ' माघ सुदि ३ सोमे ' छे, ज्यारे ३३१ नंबरना
SR No.009688
Book TitlePrachin Lekh Sangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri, Vidyavijay
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1929
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size81 MB
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