SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राकृतलेखविभाग। खने न] चतुरंतकठीनगुनोपगतेनं कलिंगाधिपतिना सिरिखारवेलेनं. पंदरसवसानि सिरिकुमारसरीरवता कीडितो कुमारपथ्थरमां फाट छ जेथी ते क जेवो देखाय छे. ते जम्या उपर जइने में जोयुं छे के ए सीधी लीटी नथी. ४. वधनेन ने बदले K तथा c बन्नेमा छधनेन छे. पण मूळ लेखमां व चोखो छे. ५. मुभ ना भ ने बदले ( तथा C मां के छे. मूळ लेखमां अक्षर अस्पष्ट छे. तेथीज आ भूल थई छे. भ अक्षर विषे मने खात्री छे. ६. 0 मां चतुरंकल छे. पण K मां त छे अने मूळ लेखमा त स्पष्ट छे. ७. ( नी नकलमां गुनोपगतेन खोटुं छे. ८ मां छेल्ला प अने ग अक्षरो जे स्पष्ट छे ते सिवाय ते खरुं छे. ८. कलिंगाधिपति ना मूळ लेखमा लिं उपरनुं अनुस्वार जो के जरुरनुं छे तोपण नथी C पोतानी नकलमां अनुमान तरीके अनुस्वार आपे छे. हुं धारूं छु के x नी नकलमा लि नो इकार आवेलो नथी. छेल्लो अक्षर K नी नकलमां रा जेवो देखाय छे. C नी नकलमां चा छे जे खोटुं छे. ९. K मां सिरिखेरवेलोनं तथा c मां सिकावारवेलेन छे. पण मूळमां सिरि स्पष्ट छे. खारवेलेन मा छेला चार अक्षरो स्पष्ट छे. पेहेलो अक्षर शंकास्पद छे, ते खा अगर खि होई शके पण घणे भागे ते खा छे. कारण के आ लेखनी छेल्ली लौटीमां खारवेल ए माम स्पष्ट आपेलं छे. "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009685
Book TitlePrachin Jain Lekh Sangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1917
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy