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________________ कारण ए ज होई शके के श्वेतांबर साधुओ वस्त्रधारी होवाथी तेओ घणा भागे जनसमाजना सहवासवाळा वास स्थानमा ज विशेष रहेता हता अने दिगंबर मुनिओ नमदशामा रहेता होवाथी तेमने निर्जन प्रदेशमा ज रहेवानी विशेष फरज पडती हती, तेथी तेमना रहेवा माटे तेवा प्रदेशोमां आवां लयनो-गुफामंदिरो बनाववानी आवश्यकता पडी होवी जोईए. आ विषयमा एक वात अवश्य विचारवा जेवी छे अने ते ए छे के:-- जैनशास्त्रोमा जे निग्रंथोना आचारो बांधवामां आव्या छे तेमां एक एवो. पण नियम छे के साधुना माटे-खास साधुने उद्देशीने-बनावेला कोइ पण स्थानमा साधुए निवास न करवो जोइए अने जो साधु तेमां जाणतो छतो निवास करे तो तेने वसतिकर्मनो दोष लागे. आ नियम तेमनो म्होटो भाग सातमा सैकानी लगभगमा थयलो छ. जैनगुहामंदिरोमांधी ध्यान खेंचे तेवां अने कारीगरीनी दृधिए उत्तम जणायला एवा फक्त बेज छे. जे एरुलाना आश्चर्यकारक अने प्रसिद्ध गुहामंदिरोना महान् समूहमा रहेला छे अने इन्द्रसभा अने जगन्नाथसभाना नाम ओळखाय छे. ' केव टेम्पल्स ऑफ इन्डीआ' ना कर्ताओk कथन छे के, ज्यारे बौद्धधर्मनी उतरती कळा थवा लागी त्यारे जैनधर्म प्रकाशमां आववा लाग्यो भने बौद्धोनी देखादेखी जैनो पण पाछळथी पोताना तेवा गुहामंदिरो बनाववा लाग्या... विगैरे. हेमन आ कथन भूल भरेलुं छे. कारण के ? हाथीगुफावाला लेख अने तेनवर्णनथी स्पष्ट जणाय छे के जैनो पण शुरुआतथी ज आवां गुहामंदिरो बनावता आव्या छ. उदयगिरिनी आ गुहाओने उक्त ग्रंथकर्ताओए बौद्धधर्मी गणी छे परंतु आलेखमा स्पष्टीकरणथी ते जैनधर्मनी छे एम उपर निश्चि तरुपे कहेवाइ गयुं छे. जैन अने बौद्धधर्मनी केटलीक समानताना लिधे आवी जातनी भ्रान्तिमा घणो वधारो थयो छ, संभव छ के उपर जणाव्या शिवाय बीजां पण जैन महामंदिरो हशे परंतु तेमनामां कोई विशेष चिह्न नहि जणावाथी ते बौद्धधर्मन! ज मानी लेवामां आव्या होय. वान्सेन्ट ए. स्मीथना कथन मुजब जेम जनरल कनि: गहामे स्तूपमात्रने बौद्धधर्मना मानी मथुरा विमरेना जैनस्तूपोने पण बौद्धस्तृपल्या छे, तेम आ गुहामंदिरोनी वाबत पण केम नहि बन्यु होय. "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009685
Book TitlePrachin Jain Lekh Sangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1917
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size4 MB
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