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________________ एक बहुत ही सुन्दर और विशाल जिनमंदिर बन गया। जिसमें श्रीशांतिनाथ भगवान की मूर्ति व श्री गुरुदेव जिनदत्तसूरिजी महाराज के चरण पादुका प्रतिष्ठित कराये। आप प्रतिदिन सबेरे सामायिक प्रभु पूजा करते थे तथा शाम को तिथियों के दिन प्रतिक्रमण किया करते थे। प्रभु दर्शन व आरती भी आपका नित्य का कार्य था। प्रत पचखान भी आप रोज करते थे। इस तरह आपका जीवन धर्म मूलक भावनाओं से ओतप्रोत था। ७२ वर्ष की अवस्था में सम्वत् २००१ में आपका स्वर्गवास हुआ। मृत्यु के एक सप्ताह पूर्व आपने सभी कुटुम्बियों आदि से समता पूर्वक क्षमाभाव प्रकट किया एवं धार्मिक ग्रन्थों के श्रवण और अंतिम समय तक पद्मावतीजीवराशि आराधना का भक्ति पूर्वक श्रवण किया। अन्त में काउसग्ग अवस्था में आपने देहत्याग किया। __ आपके ज्येष्ठ पुत्र सेठ सम्पतलालजी भी परम थर्मानुरागी हैं। जो सज्जनता और विनम्रता की मूर्ति हैं। कटनी में आपको अच्छी लोकप्रियता प्राप्त है। आपके तीन पुत्र है। चि० सोहनलाल, प्रेमचन्द व हेमचन्द । श्री सोहनलाल भीअपने पिता की गुरम परंपरा के प्रतीक हैं। सेठजी के द्वितीय पुत्र सेठ मूलचन्द गोलेच्छा भी बड़े स्वाध्याय प्रेमी व्यक्ति हैं। जबलपुर के सदर बाजार के आप ख्याति प्राप्त व्यापारी हैं। समय समय पर सार्वजनिक कार्यों में आपका सहयोग रहता है तथा आप कई स्थानीय संस्थाओं के पदाधिकारी है। श्रीमूलचन्दजी के दो पुत्र हैं, इन पंक्तियों का लेखक और चिं. ज्ञानचन्द । यहां सेठ साहिब का परिचय कराने का हमारा यही अभिप्राय है कि ऐसे ही आदर्श पुरुष जिनमें सांसारिक संस्कार प्रसंगतः आते हैं और उचित पोषण भी पाते हैं। पर धार्मिक संस्कार जन्मतः साथ हैं तथा उनकी सरल धार्मिक वृत्ति के फलस्वरूप सदा बढ़ते रहते हैं। अपने आसपास का वातावरण शुद्ध सांस्कृतिक बनाकर अपना और दूसरों का कल्याण करने में सफल होते है। -जीवनचंद गोलेच्छा बी. ए. "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009681
Book TitleJain Dhatu Pratima Lekh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year1950
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size4 MB
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